कब गुरु द्वारा दी गई ऊर्जा से उतपन्न प्रकाश या शब्द का आभाष ही साधक को न रहे यदि साधक ध्यान करते करते ऐसी स्थिति में पहुँच जाता है जहां उसे खुद का ध्यान ही न रहे मात्र ध्येय ही शेष रह जाये तो ऐसी स्थिति को उच्च समाधि कहते हैं । इसमे ज्ञेय, ज्ञान तथा ज्ञाता का अंतर समाप्त हो जाता है साधक बाहरी वस्तुओ की संरचना के पार होमुक्त हो केवल उसकी मुक्त साक्षी आत्मा रह जाता है । यहाँ साधक परम स्थिर तथा परम जाग्रत हो जाता है ।