ध्यान से नाद तक: आत्मा की अंतःयात्रा का रहस्य

अद्यतमिक योग में महर्षि पतंजलि के द्वारा योग के आठ अंग बताये गए हैयमनियमआसनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधिये आठ सीढ़िया है जो हमे अद्यतमिक योग में ऊंचाई पर ले जाती है जब हम ध्यान समाधि मे अन्तरंग यात्रा करते है तो हमे हर अंग से ऊर्जा का गमन होता महसूस होताहै जिसका माध्यम इड़ा पिंगला ओर सुषुम्ना होती है और जब साधक ध्यान में खो जाता है और मैं का अस्तित्व मिट कर सिर्फ तू ही तू रहता है यहां पर समाधि में शून्य की अवस्था आ जाती है और मैं मिट के सिर्फ वो ही वो रहता है और ऊर्जा मय प्रकाश हमे विभिन्न रंग में नजर आते है और अनाहद गूंज हमे शरीर मे हरकत करती हुई महसूस होती है ध्यान स्वम् को।खोजने का साधन नही बल्कि डूबने के साधन है जैसे जमीन पर रखी हुई बर्फ पिंघल कर पानी मे बदल।जाती है ठीक उसी तरह हमारे अंदर के विकार काम क्रोध लालच मोह अहंकार जलन घमण्ड ईर्ष्या द्वेष आदि का खात्मा हो जाता है और इंसान इंसान न हो कर संत का रूप में बदल जाता है जहां मैं का खत्म हो जाये और वही बचे यही से अद्यतमिक राज योग अनाहद नाद शुरू होती है जो विभिन्न चक्रो के माध्यम से सहस्त्र चक्र तक पहुच ओर साधना के अंत मे गुरु की मेहर से सहस्त्र चक्र से बाहर निकल आत्मा में समा कर आत्मा बन जाती है यहां नाद ही आत्मा कर स्वरूप में शरीर मे गमन करती है और मर्त्यु पर सूक्ष्म शरीर के संग हो कर आंतरिक्ष में चली जाती है

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