नाद में विलीन होती पहचान: जब ‘मैं’ मिटता है और ‘तू’ प्रकट होता है

अध्यात्म में ‘मैं’ को मिटाकर ‘तू’ बनने की प्रक्रिया औरअद्यतमिक नाद का महत्व बहुत कुछ मायने रखता है जिसमे मैं’ को मिटाकर ‘तू’ बनने का अर्थ है अहंकार का विसर्जन करके परम चेतना या ब्रह्मांडीय चेतना के साथ एकाकार होना। यह आध्यात्मिक यात्रा का एक अद्यतमिक व्यक्ति के लिए मुख्य केंद्रीय लक्ष्य है, जहाँ व्यक्तिगत पहचान स्वत् ही खत्म हो जाती है और व्यक्ति स्वयं को समष्टि का अविभाज्य अंग महसूस करने लगता है। नाद इस प्रक्रिया में एक अत्यंत शक्तिशाली उपकरण है।जो उचाई तक।ले जाता है और इसे पाने के बाद स्वम् के अस्तित्व को खो कर अलग ही पहचान बना लेता है यहां मैं’ रूपी (अहंकार) को मिटाना जरूरी है यहां’मैं’ का मतलब है हमारी सीमित व्यक्तिगत पहचान, हमारी धारणाएँ, विचार, भावनाएँ, पसंद-नापसंद, और वह सब जो हमें दूसरों से अलग करता है। यह अहंकार ही हमें ‘तू’ से अलग महसूस कराता है। इसे मिटाने के लिए कई आध्यात्मिक अभ्यास गुरु के द्वारा बताए जाते है जिनको हमे जीवन मे अपनाना होता है जिनमे पहला है स्व-अन्वेषण की ‘मैं कौन हूँ?’ इस प्रश्न का लगातार गहरा चिंतन करना होता है तब मैं को हु समझ में आता है फिर आता है शिष्य के द्वारा समर्पण कर अपनी इच्छाओं, नियंत्रण की भावना, और परिणामों के प्रति लगाव को परम शक्ति के प्रति समर्पित करना। ओर कर्म योग फल की इच्छा के बिना कर्म करना, जिससे अहंकार का पोषण कम होता है।इससे ज्ञान उतपन्न होता है और ज्ञान योग में : सत्य के स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना और अज्ञानता को दूर करना।प्रेम और भक्ति के माध्यम से परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण होना ओर परमात्मा काध्यान कर विचारों और भावनाओं से स्वयं को अलग कर साक्षी भाव में स्थित होना, जिससे ‘मैं’ की पकड़ ढीली पड़ती है।’तू’ (परम चेतना) बनना’तू’ बनना कोई नई अवस्था प्राप्त करना नहीं है, बल्कि अपनी वास्तविक, असीम प्रकृति को पहचानना है जो हमेशा से मौजूद थी, पर अहंकार के पर्दे से ढकी हुई थी। यह अवस्था समाधि, मोक्ष या आत्म-साक्षात्कार के रूप में वर्णित की जाती है। इसमें व्यक्ति स्वयं को सीमित शरीर और मन से परे, एक व्यापक, अविभाज्य चेतना के रूप में अनुभव करता है।नाद का महत्व ‘मैं’ को मिटाने और ‘तू’ बनने में:नाद योग एक प्राचीन आध्यात्मिक प्रथा है जो ध्वनिपर केंद्रित है। ब्रह्मांड को अक्सर ‘नाद’ या ‘शब्द’ के रूप में वर्णित किया गया है – एक आदिम ध्वनि जिससे सब कुछ उत्पन्न हुआ है। नाद योग में, आंतरिक और बाहरी ध्वनियों का उपयोग मन को शांत करने, चक्रों को सक्रिय करने और अंततः परम चेतना के साथ जुड़ने के लिए किया जाता है।।मन को एकाग्र करना व आंतरिक नाद पर : ध्यान की गहरी अवस्थाओं में, जब होता है तो साधक को विभिन्न प्रकार की आंतरिक ध्वनियाँ (जैसे घंटी, शंख, बाँसुरी, मेघ गर्जना) सुनाई देती हैं। इन ध्वनियों पर ध्यान केंद्रित करने से मन बाहरी विकर्षणों से हटकर भीतर की ओर मुड़ता है। यह मन की चंचलता को कम करता है, जो ‘मैं’ को मजबूत करती है।यहांनाद सकारात्मक स्पंदन उत्पन्न करती हैं, जिससे आंतरिक शांति और स्पष्टता आती है जब साधक आंतरिक नाद में लीन हो जाता है, तो समय और स्थान की चेतना लुप्त होने लगती है। व्यक्तिगत पहचान धुंधली पड़ने लगती है क्योंकि मन ध्वनि में विलीन हो जाता है। यह ‘मैं’ के बंधन को ढीला करता है।गुरु के द्वारा बताया मंत्र ॐ मंत्रका उच्चारण शरीर के भीतर विशेष ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) को सक्रिय करता है और एक उच्च कंपन पैदा करता है। यह कंपन निम्नतर, अहंकारी प्रवृत्तियों को शुद्ध करने में मदद करता है।ये ओम नाद योग कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने में मदद करता है। जब यह शक्ति जागृत होती है, तो यह चक्रों से होते हुए ऊपर उठती है, इड़ा पिंगला ओर सुषम्ना में स्तिथ ऊर्जा केगमन के ब्लॉकेजों को हटाती है और शरीर में ऊर्जा का संतुलन स्थापित करती है। एक संतुलित ऊर्जा प्रणाली ‘मैं’ के साथ जुड़े शारीरिक और मानसिक तनाव को कम करती है।नाद को अक्सर ‘शब्द ब्रह्म’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है ध्वनि के रूप में ब्रह्मांडीय चेतना। नाद योग का अभ्यास करते-करते साधक उस आदिम ध्वनि से जुड़ता है जिससे सब कुछ उत्पन्न हुआ है। इस संबंध के माध्यम से, वह स्वयं को एक अलग इकाई के रूप में नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय चेतना के एक हिस्से के रूप में अनुभव करता है। यह ‘मैं’ से ‘तू’ में संक्रमण है। चुकी हम।जानते है कीॐ’ की ध्वनि को ब्रह्मांड की मौलिक ध्वनि माना जाता है। इसके गहरे ध्यान से व्यक्ति ब्रह्मांड के साथ एकत्व का अनुभव करता है।नाद योग के साथ क्या करें:यदि व्यक्ति के पास नाद है

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