अध्यात्म में यदि कोई व्यक्ति अपने सुख को त्यागकर दूसरों का दुख अपने ऊपर लेता है, तो इसे करुणा और परोपकार की उच्च अवस्था माना जाता है। ऐसा करने से निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं:
- आंतरिक शुद्धि और विनम्रता: यह अहंकार को कम करता है और आत्मा को शुद्ध करता है, जिससे व्यक्ति में विनम्रता और सहानुभूति का विकास होता है।
- कर्मों का शोधन: यह अच्छे कर्म (पुण्य) का संचय करता है, जिससे पिछले बुरे कर्मों (पापों) का क्षय हो सकता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: ऐसा त्याग व्यक्ति को आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है, क्योंकि यह स्वयं को सीमित ‘मैं’ से ऊपर उठाने में सहायता करता है।
- मानसिक शांति और संतोष: दूसरों के दुख को कम करने से आंतरिक संतोष और शांति मिलती है, जो भौतिक सुखों से कहीं अधिक स्थायी होती है।
- दुख सहने की क्षमता: यह व्यक्ति को कष्टों को धैर्यपूर्वक सहन करने और जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति देता है।
हालाँकि, इसे सही दृष्टिकोण और संतुलन के साथ अपनाना चाहिए, ताकि यह आत्म-विनाशकारी न बन जाए। ऐसा तभी संभव है जब व्यक्ति आत्मिक रूप से सशक्त हो और उसने अहंकार, आसक्ति और मोह से मुक्ति पा ली हो।