अनाहद नाद (आवाज़) का अनुभव ध्यान में हमारे अंदर की प्रगति का गहरा और सूक्ष्म संकेत है; यह कोई बाहर की संगीत ध्वनि नहीं, बल्कि अंतरात्मा से सुनाई देने वाली दिव्य ध्वनि होती है जो अध्यात्म में ऊँची अवस्था दर्शाती है।अनाहद नाद अनुभव करने के संकेतसाधक जब ध्यान में गहराई तक पहुंचते हैं संधि में लय हो।कर उनका ध्यान शुण्य में बदल।जाता है , तो वे कानों से नहीं बल्कि भीतर चित्त या आत्मा से झींगुर की झंकार, घंटी, वीणा, या सन्नाटे- धक धक जैसी आवाज़ सुनते हैं।यह अनुभव प्रायः आज्ञा चक्र (माथे के बीच) या सिर के अंदर होता है और इसमें शरीर में हल्की सनसनाहट, कंपन, ऊर्जा का प्रवाह भी महसूस होता है।चित्त जब इन ध्वनियों पर केंद्रित होता है और बाकी बाहरी आवाजें शांत हो जाती हैं, तब साधक शांति, मौन और एक अलग अस्तित्व का अनुभव करते हैं; यह आध्यात्मिक चेतना जागने की दशा है।कैसे पहचानें कि अनाहद नाद अनुभव हो रहा हैकान बंद कर लें – यदि ध्वनि फिर भी स्पष्ट रूप से आती रहे तो यह बाहरी नहीं, अंतर-आवाज़ है।यह ध्वनि कभी स्थिर, कभी बदलती प्रतीत हो सकती है, पर उसमें विशेष ऊर्जा की अनुभूति होगी जो चित्त को ऊपर की ओर खींचती है।जब मानसिक एकाग्रता पूरी तरह भीतर अवस्थित हो जाए और शारीरिक चैतन्यता कम हो, तभी अनाहद नाद की अवस्था में पहुंचना सफल समझें।अध्यात्म में अनाहद नाद की प्रगति के लक्षणअभ्यास में यदि साधक सिर्फ एक सूक्ष्म आवाज़ सुन रहे हैं तो उसे आज्ञा चक्र पर केंद्रित करना चाहिए।धीरे-धीरे यह आवाज़ बदलकर, लगातार एक रस व दिव्य ऊर्जा का स्रोत बन जाती है — यही आध्यात्मिक चेतना के द्वार खुलने का संकेत है।साधना जितनी गहरी, अनुभव उतना स्थिर व दिव्य होता है — कबीर और संत समुदाय ने इसे भीतर की असीम ध्वनि का नाम दिया है।सरल अभ्यासध्यान के समय चित्त को आज्ञा चक्र या सिर में आने वाली किसी भी स्पंदन या ध्वनि पर केंद्रित करे।इस अनुभव के दौरान शरीर में हल्की सनसनाहट या ऊर्जा का प्रवाह महसूस हो सकता है — यह साधना की सही दिशा और प्रगति का प्रमाण है।इस प्रकार, अनाहद नाद शरीर में अनुभव करते समय साधक को भीतर की मौन, दिव्य ध्वनि पहचाननी चाहिए और उसे आज्ञा चक्र एवं चेतना के केंद्र पर केंद्रित करना चाहिए; यही आध्यात्मिक प्रगति का अनुभव है