अनाहद शब्द प्रकाश और आत्मा का रूप एक आध्यात्मिक और गूढ़ विषय है, जो ध्यान और साधना के अनुभव से जुड़ा होता है। अनाहद नाद का अर्थ है वह “अभिजीत” सदैव बजता रहने वाला अथवा अपहा ध्वनि स्वरूप, जो कभी रुका नहीं और सृष्टि से पहले भी था और अंत के बाद भी रहेगा। इसे परम ध्वनि के रूप में समझा जाता है, जो ध्यान के गहरे स्तरों पर साधक के भीतर सुनाई देती है। इसका स्वरूप न केवल ध्वनि है, बल्कि इसके साथ अनाहत ज्योति (आंतरिक प्रकाश) भी सह-अस्तित्व में होता है, जो आत्मा के भीतर छिपा होता है। यह प्रकाश भौतिक नहीं है, बल्कि आत्मा की चेतना का प्रकाश है, जो साधना और समर्पण से प्रकट होता है।अनाहद नाद और प्रकाश आध्यात्मिक अनुभूति के रूप में आत्मा की उस स्थिति का संकेत होते हैं जहां साधक मन और माया से ऊपर उठकर सत्पुरुष की ओर बढ़ता है, जैसे कोई पक्षी पिंजरे से बाहर खुली आकाश की ओर उड़ चला हो। यह प्रकाश कभी एक छोटे बिंदु के रूप में, कभी तारे की तरह टिमटिमाता है और कभी सूर्य या चंद्रमा की तरह तेजस्वी आभा फैलाता है। यह दोनों (ध्वनि और ज्योति) एक ही सत्य के दो रूप माने जाते हैं — जैसे दीपक में लौ और प्रकाश होते हैं।आध्यात्मिक दृष्टि से अनाहद नाद और आत्मा का प्रकाश एक ही परम सत्ता के दो स्वरूप हैं। यह साधना के सबसे ऊँचे चरणों में प्रकट होता है, जब आत्मा संपूर्ण विलीनता (समाधि) की स्थिति में पहुँच जाती है और प्रेम, शांति और मौन के उस दिव्य अनुभव में डूब जाती है, जहां ईश्वर और आत्मा में कोई भेद नहीं रहता। इस अवस्था में अनाहद नाद केवल ध्वनि नहीं, बल्कि आत्मा की आंतरिक पुकार है और प्रकाश आत्मा की चेतना की ज्योति, जो हमें हमारे वास्तविक स्वरूप की ओर ले जाती है।संतमत और गुरु ग्रंथ साहिब में इस विषय को बड़े सहजता से बताया गया है कि अनाहद नाद (अनाहत शब्द) वह अमर, अपहृत स्वरों का स्रोत है, जो ईश्वरस्वरूप प्रकाश के समान है। यह नाद और जोति एक-दूसरे से अलग नहीं हैं, बल्कि एक ही दिव्य ऊर्जा के दो पहलू हैं, जो आत्मा को उसकी अंतरतम पहचान की ओर खींचते हैं।