आध्यात्मिकता में गुरु की दी हुई अनाहद (अनाहत नाद) का महत्व बहुत उच्च होता है। गुरु द्वारा दी गई अनाहद की प्राप्ति आध्यात्मिक साक्षात्कार और परमात्मा की अनुभूति का सूचक होती है। संतमत में, जो व्यक्ति गुरु की शरण में जाकर अनाहद नाद का अनुभव करता है, वह आध्यात्मिक मार्ग पर सत्य साधक माना जाता है और संत की श्रेणी में आता है।संतमत के संदर्भ में, संत वह होता है जिसने अपने अहंकार और माया को त्यागकर गुरु के द्वारा प्राप्त सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान को आत्मसात किया हो और उस ज्ञान के अनुसार जीवात्मा को परमात्मा से जोड़ने वाला मार्ग बताया हो। गुरु की दी हुई अनाहद जो आत्मा के भीतर की दिव्य ध्वनि है, वह संतत्व की पहचान है, जो मनुष्य को भौतिक जगत से परे ले जाकर परमात्मा के निकट करती है। अतः, गुरु की दी हुई अनाहद प्राप्त व्यक्ति को संत माना जाता है, क्योंकि संतमत में संत का मानक आध्यात्मिक ज्ञान, गुरु की दीक्षा, और वास्तविक चेतना की अनुभूति है।इस प्रकार, गुरु की दी हुई अनाहद प्राप्त व्यक्ति का स्थान संतमत में संत के रूप में होता है, जो आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक और मार्गदर्शक होता है। ऐसे व्यक्ति को साधु और संत दोनों माना जा सकता है, किंतु जिनके पास यह दिव्य अनुभव और गुरु का आशीर्वाद हो वे विशेष रूप से संत की श्रेणी में आते हैं।यह सिद्धांत गुरु ग्रंथ साहिब, संतमत, और अन्य संतमत पर आधारित शिक्षाओं में स्पष्ट रूप से मिलता है, जहां गुरु के बिना मुक्ति नहीं होती और गुरु की दीक्षा एवम अनाहद नाद की प्राप्ति को परम आध्यात्मिक अनुभव माना जाता है