आध्यात्मिक तरंग का शरीर के भीतर उत्पन्न होकर ब्रह्मांड तक प्रसारित होना और वापसी का संबंध योग, ध्यान और आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रियाओं से है। इस यात्रा में शरीर के सूक्ष्म केंद्रों (चक्रों) से ऊर्जा उठती है, ब्रह्मरंध्र या सहस्रार चक्र से ब्रह्मांडीय चेतना में प्रवेश करती है और आत्मा मूल स्वरूप की याद के साथ वापस लौट आती है।
शरीर से ब्रह्मांड तक यात्रा
ध्यान, साधना एवं योग में मनुष्य अपनी चेतना को शरीर के विभिन्न चक्रों से ऊपर उठाकर ब्रह्मरंध्र तक ले जाता है।
सहस्रार चक्र (मस्तिष्क का शिखर) से आत्मा की चेतना ब्रह्मांडीय ऊर्जा या परमचैतन्य से एकाकार अनुभव करती है।
अनुभवी साधक इस समय परम शांति, आनंद और ब्रह्मज्ञान का अनुभव करते हैं, जिसे पुराणों व उपनिषदों में “परब्रह्म के साथ मिलन” कहा गया है।
वापसी: ब्रह्मांड से शरीर के भीतर
इस अवस्था के पश्चात साधक की चेतना पुनः शरीर में लौटती है, मगर अब उसमें परम ज्ञान, दिव्यता और संतुलन का भाव भर जाता है।
यह यात्रा आत्मसाक्षात्कार, कर्मशुद्धि और आत्मज्ञान का स्रोत है, जिससे व्यक्ति को जीवन में स्थायी शांति, purpose और जागरूकता प्राप्त होती है।
वेद-उपनिषद के मुताबिक, आत्मा के यह दोनों ओर (आंतरिक—शरीर में और बाहरी—ब्रह्मांडीय चेतना तक) आवागमन से सच्चा आध्यात्मिक विकास होता है।
निष्कर्ष
यह प्रक्रिया केवल अनुभूति और साधना से ही संभव है, जिसमें स्थायी ध्यान, योग और आत्मचिंतन का अभ्यास आवश्यक है।
साधक अपने भीतर दिव्यता और चेतना के उच्चतम स्तर का अनुभव करते हुए शरीर से ब्रह्मांड तक और वापसी की आध्यात्मिक तरंग को महसूस करता है