शरीर नहीं, आत्मा है इंसान की वास्तविकता

इंसान की हक़ीक़त उसका शरीर (जिस्म) नहीं, बल्कि उसकी असली हक़ीक़त उसकी आत्मा (रूह) है। आचार्य प्रशांत के अनुसार आत्मा परम सत्य है, जो न जन्म लेती है, न मरती है, और न कभी आती या जाती है। आत्मा सत्य की अनादि और अनंत हक़ीक़त है, जो बदली नहीं जाती। इसके विपरीत, रूह जिसे लोग सामान्यतया आत्मा समझते हैं, वह मतभेद वाली एक कल्पना या असत्य है, क्योंकि वह आकर छूट जाने वाली चीज़ मानी जाती है। आत्मा के विपरीत रूह का कोई आध्यात्मिक या दार्शनिक समर्थन नहीं है और यह केवल अतीत की धारणा है।इस दृष्टिकोण में इंसान का सच स्वरूप उसकी आत्मा है, जो कभी समाप्त नहीं होती, जबकि शरीर और रूह अस्थायी हैं। शरीर में आत्मा का वास नहीं होता बल्कि आत्मा स्वयं सच्चाई है, जो व्यक्ति और जगत दोनों की सच्चाई का आधार है। व्यक्ति की पहचान उसका जिस्म नहीं, बल्कि उसकी आत्मा है, जो स्थिर और शाश्वत है। जब आत्मा शरीर छोड़ देती है, तब वही शरीर अंततः जीवित इंसान नहीं, बल्कि मृत शरीर बन जाता है। इस प्रकार, इंसान की वास्तविकता उसके शरीर से कहीं अधिक है, जो उसकी आत्मा में विद्यमान है .इस विचार को इस्लाम में भी आत्मा (रूह) की अवधारणा के साथ समझा जाता है, जहां आत्मा को ईश्वर की तरफ से जीवन का स्रोत माना गया है और वह किसी व्यक्ति के अस्तित्व का मूल तत्व है .अतः कहा जा सकता है कि इंसान की असली हक़ीक़त उसकी आत्मा है, न कि शरीर या जिस्म, और यही आत्मा उसके अस्तित्व का मुख्य आधार है।विभिन्न धर्म आत्मा की अलग-अलग व्याख्या करते हैं, जिनका सारांश इस प्रकार है:हिंदू धर्महिंदू धर्म में आत्मा (आत्मा या आत्मन्) को शाश्वत, अमर और अपरिमित माना जाता है। यह शरीर और मन से अलग है, और सभी जीवधारियों में विद्यमान रहती है। आत्मा कर्मों के अनुसार अनेक जन्मों लेती है और मोक्ष पा कर पुनर्जन्म के चकरी से मुक्त हो जाती है। गीता में आत्मा को अमर तथा पवित्र बताया गया है, जो कभी नष्ट नहीं होती। आत्मा का स्वभाव आनंद और शांति है, जो शारीरिक और मानसिक विकारों से मुक्त है। आत्मा ही जीव का सच्चा स्वरूप और सार है।ईसाई धर्मईसाई धर्म में आत्मा (Soul) को एक दिव्य तत्व माना जाता है, जो शरीर से अलग होता है और मृत्यु के बाद भी जीवित रहता है। आत्मा की शुद्धि, भ्रष्टता और पाप की बात होती है। ईसाई मानते हैं कि आत्मा का उद्धार या नाश भविष्य न्याय के समय होगा। आत्मा और अंत:करण के बीच संबंध की चर्चा भी होती है, और मानव आत्मा को तार्किक और विशेष माना जाता है। ईसाई धर्म में पवित्र आत्मा का भी महत्व है।इस्लामइस्लाम में आत्मा (रूह) को ईश्वर की एक सांस माना जाता है, जो जीवन का आधार है। आत्मा अमर होती है, और मृत्यु के बाद उसका हिसाब-किताब होगा। इस्लामी मान्यता में आत्मा का ईश्वर से गहरा संबंध है, और आत्मा का शरीर छोड़ना मृत्यु है। आत्मा की शुद्धि, उसके कर्म और उसके साथ ईश्वर का न्याय महत्वपूर्ण है।बौद्ध धर्मबौद्ध धर्म में आत्मा की पारंपरिक अवधारणा का इनकार किया गया है। यहां ‘अनात्मा’ का सिद्धांत है, जो बताता है कि कोई स्थायी आत्मा नहीं होती। व्यक्ति की पहचान उसकी कर्म-शाखा या चेतना के संयोजन के रूप में होती है, जो पुनर्जन्म के चक्र में निरंतर परिवर्तनशील है। आत्मा का नाम मात्र निरंतर प्रवाह है, स्थायी आत्मा नहीं।यहूदी धर्मयहूदी धर्म में आत्मा को एक दिव्य जीवनशक्ति माना जाता है, जो शरीर को जीवन देती है। मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति पर विभिन्न मत हैं, पर जीवन में नैतिकता और कर्म का प्रभाव आत्मा की शुद्धि में माना जाता है। यहूदी धर्म में आत्मा के अस्तित्व और उसके ईश्वर से संबंध की चर्चा दार्शनिक रूप से होती है।संक्षेप में, सभी धर्मों में आत्मा को किसी न किसी रूप में अमर, शाश्वत और व्यक्ति का सच्चा अस्तित्व माना गया है, परंतु उनकी प्रकृति, उसके शरीर से संबंध, और मृत्यु के बाद की स्थिति को लेकर मतभेद हैं। हिंदू धर्म में यह शरीर से अलग, शाश्वत और कर्म से बंधी होती है; ईसाई-इस्लाम में यह ईश्वर से संबंधित दिव्य जीवनी शक्ति है; और बौद्ध धर्म में आत्मा का अस्तित्व निरस्त माना जाता हैहिंदू दर्शन में आत्मा और ब्रह्म के बीच मुख्य अंतर इस प्रकार है:आत्मा (आत्मन्)आत्मा व्यक्ति के वास्तविक, अजर-अमर, व्यक्तिगत स्वरूप को दर्शाती है।यह शरीर और मन से अलग एक स्वतंत्र चेतना है जो प्रत्येक जीव में विद्यमान होती है।आत्मा को अक्सर जीवात्मा कहा जाता है, जो जन्म-मरण के चक्र में भ्रमित होती है।यह सीमित और व्यक्तिगत पहलू है, जो शरीर-मन के साथ बंधा होता है।ब्रह्म (परमात्मा)ब्रह्म सभी ब्रह्मांड की सर्वोच्च, शाश्वत, सार्वभौमिक चेतना और परम सत्य है।यह न केवल जीवों का, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि का मूल और आधार है।ब्रह्म निराकार, अखण्ड, और अव्यक्त है, जो सब कुछ समाहित करता है।इसे ‘सर्वखल्विदं ब्रह्म’ (संपूर्ण जगत ब्रह्म है) कहा गया है, यानी यह संपूर्ण अस्तित्व का सार है।दोनों का संबंधअद्वैत वेदांत के अनुसार आत्मा और ब्रह्म मूलतः एक ही हैं, क्योंकि “आयम आत्मा ब्रह्म” अर्थात आत्मा ही ब्रह्म है।अन्य कुछ विचारधाराओं में आत्मा और ब्रह्म को भिन्न माना जाता है; आत्मा व्यक्तिगत चेतना है जबकि ब्रह्म सर्वव्यापक चेतना।आत्मा ब्रह्म की एक अंश या प्रतिबिंब है, जो ज्ञान के अभाव में पृथक दिखाई देती है।मोक्ष या आत्मज्ञान की प्राप्ति पर व्यक्ति को यह अहसास होता है कि उसकी आत्मा और ब्रह्म एक हैं।इस प्रकार, आत्मा और ब्रह्म में मूलतः एकात्मकता है, परतों और दृष्टिकोण के आधार पर उनका भेद या अभेद समझा जाता है। आत्मा व्यक्तिगत चेतना का रूप है, जबकि ब्रह्म समष्टि और अंतिम सत्य का रूप है। हिंदू दर्शन में दोनों की एकता और भेद दोनों ही सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं।यह अंतर और संबंध वेदांत के प्रमुख ग्रंथों जैसे उपनिषद, भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र में विस्तार से वर्णित हैं

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