कैवल्य: आत्मस्वरूप में स्थित होने की परम अवस्था

पतंजलि योगसूत्र में कैवल्य का स्वरूप. उपनिषदों और अद्वैत वेदांत में कैवल्य. कैवल्य में भक्ति और प्रेम का स्वाभाविक उदय पतंजलि योगसूत्र में कैवल्ययोगसूत्र के अनुसार: “पुरुषार्थशून्यानां गुणानां प्रतिप्रसवः कैवल्यम् स्वरूपप्रतिष्ठा वा चितिशक्ति इति।”अर्थ: जब प्रकृति (गुण) पुरुष के लिए काम करना बंद कर देती है और अपनी मूल स्थिति (प्रतिप्रसव) में लौट जाती है, तब पुरुष अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है। यही कैवल्य है।यहाँ कैवल्य का मतलब है:सभी संस्कारों, वासनाओं, मोह का अंत।न कोई बंधन, न कोई अपेक्षा।उपनिषद और अद्वैत वेदांत में कैवल्य

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