गुरु-शिष्य संबंध को परलौकिक बनाने वाले साधन शास्त्रों और परंपराओं में मुख्यतः निम्नलिखित माने जाते हैं:साधना और समर्पणगुरु-शिष्य संबंध की परलौकिकता का पहला और सबसे प्रमुख साधन है शिष्य का गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण, श्रद्धा और आस्था। गुरु की शिक्षा के अनुरूप साधना करना, अहंकार त्यागना और गुरु के आदेशों का पालन ही इस संबंध को दिव्य रूप देता है। गुरु और शिष्य के बीच विश्वास और प्रेम का गहरा बंधन आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रसार का माध्यम बनता ह.वाणी और मंत्रों का प्रभावशास्त्रों में गुरु द्वारा दिए गए ओजस्वी वचन, मंत्र, श्लोक या साधनाएँ आत्मिक बंधन को मजबूत बनाती हैं। इन मंत्रों का जप, ध्यान और अभ्यास शिष्य को गुरु की दिव्य ऊर्जा से जोड़ता है, जिससे गुरु-शिष्य का संबंध भौतिक से परे आध्यात्मिक स्तर पर पहुँचता हैआध्यात्मिक शिक्षा और अनुभवगुरु-शिष्य संबंध की परलौकिकता उस समय प्रबल होती है जब गुरु शिष्य को केवल सूचना या ज्ञान नहीं देते, बल्कि उसे आध्यात्मिक अनुभवों की भी प्राप्ति कराते हैं। ध्यान, समाधि, तत्त्वज्ञान आदि साधनों से शिष्य का मन और आत्मा गुरु की उपस्थिति को महसूस करती है, जिससे रिश्ता आत्माभिमुख एवं आध्यात्मिक बनता है.अनुष्ठान और परंपरानित्य अनुष्ठान, गुरु पूजा, सत्संग, गुरु की सेवा, और परंपरागत रीति-रिवाजों का पालन भी गुरु-शिष्य संबंध को परलौकिक बनाता है। ये क्रियाएँ गुरु-शिष्य बंधन को आध्यात्मिक रूप से सुदृढ़ करती हैं और एक दिव्य आत्मिक संचार का माध्यम बनती हैंआचरण और चरित्र निर्माणशास्त्र बताते हैं कि गुरु-शिष्य संबंध में शिष्य का चरित्र निर्माण, नैतिकता, अनुशासन और गुरु की शिक्षाओं का जीवन में पालन, गुरु-शिष्य के इस संबंध को पवित्र और परलौकिक बनाते हैं। गुरु का उदाहरण और उसका आचरण शिष्य के हृदय में दिव्य ऊर्जा का संचार करता है.संक्षेप में, गुरु-शिष्य संबंध को परलौकिक बनाने वाले साधनों में गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा, गुरु द्वारा दी गई साधनाएँ, आध्यात्मिक अनुभव, परंपरागत अनुष्ठान, और शिष्य का उच्च चरित्र निर्माण शामिल होते हैं। ये सब मिलकर इस संबंध को भौतिक से परे एक दिव्य एवं आध्यात्मिक बंधन बनाते है.गुरु-शिष्य संबंध को परलौकिक बनाने वाले साधन शास्त्रों में मुख्यतः शिष्य का गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण, श्रद्धा और आस्था होती है। गुरु की दी हुई साधनाएँ, मंत्रों का जाप, आध्यात्मिक शिक्षा और अनुभव, नित्य अनुष्ठान, गुरु पूजा, गुरु सेवा, परंपराओं का पालन, और शिष्य का नैतिक आचरण तथा चरित्र निर्माण इस संबंध को दिव्य व आध्यात्मिक बनाते हैं। ये सब साधन गुरु-शिष्य के बीच गहरे आत्मिक बंधन और दिव्य ऊर्जा के प्रवाह का माध्यम बनकर इस रिश्ते को भौतिक सीमा से ऊपर ले जाते हैंमरने के बाद शिष्य की आत्मा संत से जुड़ने के विषय में शास्त्र और आध्यात्मिक अनुभवों में एक स्पष्ट विश्वास पाया जाता है। महान गुरु या संत अपने सूक्ष्म शरीर में आकर मृत्यु के समय शिष्य की आत्मा को ले जाते हैं और शिष्य की आत्मा गुरु की कृपा से मार्गदर्शन पाती है। यह जुड़ाव गुरु की सूक्ष्म ऊर्जा और प्रेम के माध्यम से होता है, जिससे शिष्य की आत्मा सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होती है.योगानंद जी जैसे महापुरुषों के अनुभव बताते हैं कि गुरु अपनी योगिक विधि से शिष्य की आत्मा को सूक्ष्म लोकों में खोजता है और उससे टेलीपैथिक प्रेम और संवाद के माध्यम से जुड़ता है। गुरु की कृपा से शिष्य की आत्मा पुनर्जन्म या मोक्ष के लिए सही दिशा प्राप्त करती है। इस जुड़ाव में गुरु की आंतरिक शक्तियाँ तथा गुरु-शिष्य के गहरे भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंध की भूमिका होती हैशास्त्र भी बताते हैं कि मरने के बाद आत्मा के मार्ग का चुनाव उसके कर्मों पर निर्भर करता है, और गुरु की कृपा से यह यात्रा सुखद और उन्नयन के लिए प्रेरित होती है। गुरु शिष्य के बंधन को मोक्ष का सेतु माना गया है, जहाँ गुरु शिष्य को संसारिक सांसारिक बंधनों से मुक्त कराने में सहायता करता है.इस प्रकार, मृत्यु के बाद शिष्य की आत्मा गुरु की सूक्ष्म उपस्थिति तथा आध्यात्मिक शक्तियों द्वारा जुड़ती है, जो शिष्य की आत्मा को सही अंतरिक्ष और लोक में मार्गदर्शन देती है.मरने के बाद शिष्य की आत्मा संत से जुड़ती है क्योंकि गुरु अपने सूक्ष्म शरीर में आकर शिष्य की आत्मा को मृत्यु के समय ग्रहण कर लेते हैं। यह अपार प्रेम और आध्यात्मिक ऊर्जा के माध्यम से होता है, जिससे शिष्य की आत्मा सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आध्यात्मिक पथ पर बढ़ती है। योगिक और टेलीपैथिक साधनों द्वारा गुरु शिष्य की आत्मा का सूक्ष्म संपर्क स्थापित करते हैं, जिससे शिष्य को पुनर्जन्म या मोक्ष के लिए सही दिशा प्राप्त होती है। शास्त्रों में भी गुरु-शिष्य का यह संबंध मोक्ष के लिए अनिवार्य माना गया है, जिसमें गुरु शिष्य की आत्मा को सांसारिक भ्रम से निकालकर ब्रह्माण्ड के उच्च लोकों तक पहुंचाता है