चिदाकाश अनुभव करवा सकने वाला गुरु वह होता है जो सच्चा, अनुभवी और सिद्ध आध्यात्मिक गुरु हो। ऐसे गुरु के निम्न गुण होते हैं:गुरु शास्त्र सम्मत और संयमी होता है, जो स्वयं अपने इंद्रियों और मन को नियंत्रित करता है। उसके स्वयं की साधना पूर्ण हो और उसका जीवन नैतिकता और आध्यात्मिकता में निर्विकल्प हो।गुरु के पास शक्ति होती है कि वह शिष्य को मंत्र दीक्षा देकर आध्यात्मिक साधना के लिए मार्ग प्रदान करे, जिससे शिष्य तीव्र गति से आध्यात्मिक अनुभव की ओर बढ़ सके।ऐसा गुरु शिष्य को बिना साधना के तत्काल चिदाकाश का अनुभव नहीं करवा सकता, बल्कि वह शिष्य को उपयुक्त साधना, भक्ति और धैर्य से मार्गदर्शन करता है, ताकि शिष्य स्वयं अपने चित्त को शुद्ध कर और ध्यान लगाकर चिदाकाश का अनुभव प्राप्त कर सके।गुरु की कृपा, ज्ञान और अनुभव से शिष्य के अंदर अंतःकरण की गहराइयां जागृत होती हैं, और शिष्य धीरे-धीरे चित्त की स्थिति में स्थिर होकर चिदाकाश का अनुभव करता है।गुरु शिष्य को आलस्य से दूर रखता है, भक्ति और साधना के महत्व को समझाता है, क्योंकि बिना प्रयत्न के अनुभव संभव नहीं होते। गुरु मेहनत और सही मार्ग का निर्देश देता है।सच्चा गुरु वह है जो शिष्य को भटकाव से बचाकर आत्मज्ञान के मार्ग पर निरंतर प्रेरित करता है, और उसकी आत्मशक्ति को जागृत करता है।गुरु के द्वारा शिष्य को चिदाकाश दर्शन करवाना एक गूढ़ आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें गुरु अपने शिष्य को आंतरिक चिदाकाश (चित्त का आकाश) का अनुभव कराता है। यह दर्शन गुरु-शिष्य संबंध की गहराई और गुरु की कृपा से संभव होता है। इस प्रक्रिया में गुरु शिष्य को गुरुमंत्र और साधनाएं देते हैं जो उसके चित्त को लय (समाधि) में ले जाने में मदद करती हैं और शिष्य की अंतःकरण की गहराइयों को जागृत करती हैं।गुरुदीक्षा के समय गुरु अपनी तपस्या, पुण्य और प्राण अंश को विशेष मंत्र दीक्षा और आशीर्वचन द्वारा शिष्य में आरोपित करते हैं, जिससे शिष्य को चिदाकाश का अनुभव हो सकता है। गुरु की त्रिप्रकार शक्ति — ज्ञान, अनुभव और अनुग्रह — से शिष्य के चित्त में स्थिरता और साक्षात्कार की स्थिति उत्पन्न होती है। गुरु-शिष्य का ऐसा सम्बन्ध भक्तिपूर्ण, श्रद्धापूर्ण और समर्पित होता है, जहां गुरु शिष्य के भीतर की दिव्यता को प्रकट करता है और उसे अपने वास्तविक स्वरूप की अनुभूति कराता है। गुरु के मार्गदर्शन में शिष्य के मन, बुद्धि और अहंकार की बाधाएं हटती हैं और शिष्य को चिदाकाश के स्वरूप का दर्शन होता है।यह दर्शन सामान्य आँखों से नहीं, बल्कि गुरु की कृपा से आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि के माध्यम से प्राप्त होता है। जब शिष्य की श्रद्धा, समर्पण और अभ्यासी अवस्था तीव्र होती है, तब गुरु का स्पर्श और वचन शिष्य के चित्त के अंदर ब्रह्ममय अनुभव उत्पन्न करते हैं। यह स्थिति शिष्य को आत्मा के आंतरिक आकाश और अनाहद नाद के अनुभव तक ले जाती है, जो पूर्ण शांति, आनंद और सचेतनता का स्वरूप होती है।संक्षेप में, गुरु के द्वारा शिष्य को चिदाकाश दर्शन करवाना गुरुमंत्र, साधना, गुरु की कृपा और शिष्य के गहरे समर्पण द्वारा शिष्य के चित्त-आकाश का उदय कराना है, जिससे उसे अपने दिव्य स्वरूप का साक्षात्कार होता है और ज्ञान व प्रेम का प्रकाश प्राप्त होता है