जब कोई व्यक्ति जीवन की अंतिम अवस्था ओर अध्यआत्मिक्ता के उच्च शिखर पर पहुच वियरगी बन संसार से विरक्त हो इस स्थिति को प्राप्त कर लेता है, तो उसे वही दिखाई देता है जो गुरु रूपी ईश्वर चाहता है। इसका अर्थ है कि उसकी अपनी इच्छाएँ, धारणाएँ और व्यक्तिगत दृष्टिकोण समाप्त हो जाते हैं, और वह पूरी तरह से दिव्य इच्छा के प्रति समर्पित हो जाता है।इस अवस्था के प्रमुख बिंदु:लगाव खत्म हो जाना व्यक्ति सांसारिक वस्तुओं, संबंधों और परिणामों से अपना लगाव खो देता है। यह वैराग्य की अवस्था है, जहाँ भौतिक संसार की कोई भी चीज़ उसे बांध नहीं पाती।मोह-माया से विरक्ति हो व्यक्ति मोह और माया के भ्रमजाल से मुक्त हो जाता है। वह समझ जाता है कि संसार नश्वर है और वास्तविक सुख आध्यात्मिक मार्ग में ही निहित है।विकार रहित जीवन हो जब लगाव और मोह समाप्त हो जाते हैं, तो व्यक्ति विकार रहित हो जाता है। इसका अर्थ है कि क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, अहंकार जैसे नकारात्मक गुण उस पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाते। उसका मन शांत, शुद्ध और स्थिर हो जाता है।यह वास्तव में एक उच्च आध्यात्मिक अवस्था है जिसे प्राप्त करने के लिए गहन साधना, आत्म-चिंतन और गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। यह जीवन का अंतिम लक्ष्य माना जाता है, जहाँ व्यक्ति पूर्ण शांति, आनंद और मुक्ति का अनुभव करता है।