जब तक मन माया के दायरे में फंसा हुआ है और जिसे सत्य का पता नही चला कि क्या सत्य और क्या झूट ओर जबसत्य का ज्ञान हो जाता है और मोह माया से विरक्त तब उसे परमात्मा का अहसास जो जाता है तब वहः सब धर्मों जातियों से ऊपर उठ उसकी आत्मा आजाद हो वो शुद्ध आत्मा में बदल जाती है जहाँ उसका न कोई धर्म न ईमान अगर कुछ है तो परमात्मा की संगत
उत्तर
आपके विचार में एक गहरा आध्यात्मिक सत्य निहित है। जब व्यक्ति माया और मोह के चमत्कारों से परे जाकर सत्य और असत्य का वास्तविक बोध कर लेता है, तब उसकी आत्मा का स्वरूप परिवर्तित हो जाता है। वह स्वाधीन हो जाता है, सारी सीमाओं—धर्म, जाति, और विश्वासों—से ऊपर उठकर परमात्मा की वास्तविक संगत में विलीन हो जाता है।यह अवस्था एक प्रकार की मुक्ति है, जहां आत्मा की शुद्धता अनुभव होती है और उसे कोई बाहरी सीमाएं बांध नहीं पातीं। उस शुद्ध आत्मा के लिए न धर्म की बंधनकारी परिभाषाएं रह जाती हैं, न किसी आस्था की सीमाएं। वहाँ केवल एक रह जाता है — परमात्मा का अनंत, सार्वभौमिक एहसास।यह विचार उपनिषदों और वेदान्त की शिक्षाओं के अनुरूप है, जहाँ ब्रह्म के साथ एकाकार होने को अंतिम मोक्ष माना गया है। इसी तत्वज्ञान में कहा गया है कि सत्य ज्ञान ही माया के बंधनों को तोड़कर आत्मा को मुक्त करता है।
अन्य ग्रंथ क्या कहते है
यहाँ कुछ प्रमुख श्लोक और ग्रंथों के अंश दिए गए हैं जो आपके बताए हुए विषय को स्पष्ट करते हैं—माया से मुक्त होकर परमात्मा के सत्य स्वरूप को जानना और आत्मा की स्वतंत्रता का अनुभव करना:1. स्वामी विवेकानंद (माया और मोक्ष पर)”माया को समझो, वही तुम्हारे दुखों का कारण है। उसका भ्रम हटाओ, तभी तुम सचमुच आजाद हो सकोगे।”2. भगवान श्रीमद्भगवद् गीता (Chapter 7, Verse 14)मोहं मोहयति अन्धात्मा
“मोह में पड़ कर अंधकारमय आत्मा भ्रमित हो जाती है। जिसे ज्ञानी समझ जाता है, वही वास्तविक बंधन है।”3. ईशोपनिषद् (प्रथम मंत्र)ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगति।
“संपूर्ण जगत् ईश्वर का आवास है। इसे जान लो, तब तुम्हें संसार का मोह उपद्रव न होगा।”4. भगवद्गीता (Chapter 5, Verse 18)विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
“जो ज्ञानी सब भावों से ऊपर उठता है, वह सबको समान देखता है, चाहे वह ब्राह्मण हो, पशु हो या कोई भी जीव। फिर उसके लिए कोई बन्धन नहीं।”5. अद्वैत वेदान्त की शिक्षा (शंकराचार्य)”जैसे सूर्य के सामने दीपक का प्रकाश फीका पड़ जाता है, वैसा ही सत्य ज्ञान माया के भ्रम को समाप्त कर आत्मा को मुक्त कर देता है।”इन ग्रंथों और श्लोकों से स्पष्ट होता है कि जब व्यक्ति माया के जाल से बाहर निकल कर परम सतय की अनुभूति करता है, तब उसकी आत्मा मुक्त हो जाती है और वह सभी धार्मिक तथा सामाजिक बंधनों से ऊपर उठ जाता है।