अंधकार से प्रकाश तक: आत्मा की दिव्य यात्रा

जब शरीर की आत्मा गहन समाधि अवस्था मे पहुच जाती है और उस स्थान पर पहुच जाती है जहाँ से लौटना असम्भव है ये आध्यात्मिक अनुभव और प्रतीकात्मक दर्शन से जुड़ा है। “ब्रह्माण्ड में अंधकार” का अर्थ जहा सीमित चेतना या अविद्या (अज्ञान) से लिया जा सकता है, जहाँ आत्मा को सम्पूर्णता का मार्ग नहीं दिखता। जब “प्रकाश की किरण का एक बिंदु” दिखता है, तो यह साधारण भाषा में दिव्य चेतना या ब्रह्मज्ञान का प्रवेश-द्वार है।अंधकार का प्रतीकयह अंधकार माया, अज्ञान या मन की धुंधला अवस्था का द्योतक है।इस स्थिति में आत्मा ब्रह्म का मार्ग नहीं पहचानती और भ्रमित रहती है।प्रकाश की बिंदु जैसी किरणध्यान या आत्मिक जागरण में जब पहली झलक मिलती है, तो वह “एक बिंदु” रूप में अनुभव होती है।यह बिंदु ही आत्मदीप है – सत्यसत्ता की झलक।उपनिषदों में इसे “हृदय गुहा में ज्योति” कहा गया है, जो सर्वव्यापक ब्रह्म का सूक्ष्म दर्शन है।आत्मा का उसमें खो जानाजब आत्मा उस बिंदु-ज्योति में लीन होती है, तो उसे बाहरी रास्ते यानी लौकिक संसार की ओर लौटना कठिन हो जाता है।इस खो जाने का अर्थ है – आत्मा की तादात्म्यता निरंतर चेतना के साथ।लेकिन यदि साधना अभी अधूरी है, तो जीव फिर भी लौकिक कर्मबन्धनों से बँधा रह सकता है।दार्शनिक दृष्टियोगदृष्टि में: यह स्थिति ध्यान की गहरी अवस्था है, जहाँ चित्त आकाश-ज्योति से जुड़ जाता है।वेदान्त में: वह सूक्ष्म बिंदु ही “सच्चिदानन्द ब्रह्म” का प्रवेश-द्वार है, जिसमें अंततः आत्मा विलीन हो जाती है।बौद्ध दृष्टि में: यह “चित्तनिर्वाण” की प्रारम्भिक अनुभूति हो सकती है, जहाँ शून्यता और प्रकाश एक-दूसरे में घुलते हैं।सरल रूपकसमझिए जैसे अंधकारमय गुफा में चल रहे हैं। अचानक दूर से एक रोशनी का छेद दिखता है। वही छेद आत्मा को आकर्षित करता है। आत्मा जब वहाँ पहुँचती है तो बाहर नहीं निकलती, क्योंकि उसे अपने असली घर का पता मिल गया इसे हम आध्यात्मिक अवधारणा में इस तरह से सोच सकते है कि ये ।योगिक साधना की अवस्थाएँ धारणा (Concentration)साधक जब ध्यान में बैठता है तो पहले मन को किसी एक बिंदु या प्रकाश पर एकाग्र करता है। ओर गहन समाधि अवस्था मे पहुच कर उस “प्रकाश के बिंदु के समीप पहुच उसमे समा जाता है ये ” उसी धारणा का परिणाम है।ध्यान (Meditation)लगातार उस प्रकाश में लीन रहने पर आत्मा उस ज्योति का मार्ग पहचानने लगती है।यहाँ साधक बाहरी संसार को भूलकर उसी बिंदु के भीतर खो जाता है।समाधि (Union)जब ध्यान की गहराई इतनी बढ़ जाती है कि साधक और वह प्रकाश-विंदु एक हो जाते हैं, तो उसे समाधि कहते हैं।इस स्थिति में आत्मा बाहर लौटना नहीं चाहती, क्योंकि वहाँ परम शांति और आनंद है।यह अनुभव स्वात्मनिष्ठता और ब्रह्मनिष्ठता की ओर ले जाता है।काव्यात्मक रहस्यवादी प्रतीककल्पना कीजिए –एक विशाल अंधकारमय ब्रह्माण्ड है, जहाँ कुछ भी दिखाई नहीं देता। सब ओर एक भय और शून्यता का अनुभव है। अचानक वहाँ एक छोटी-सी ज्योति जगमगाती है, जैसे अंधकार को चीरती हुई एक राह दिखा रही हो।यह प्रकाश बिंदु दिव्य चेतना का प्रतीक है।आत्मा जैसे ही इसकी ओर आकर्षित होती है, वह बाहरी दुनिया के बंधनों और अंधकार को भूलकर उसमें विलीन हो जाती है।यह विलय ही आत्मा की मुक्ति और परम मिलन का संकेत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *