जब हनुमान जी सीता माता से मिलने के बाद लंका में उपद्रव मचाते हैं — अशोक वाटिका उजाड़ देते हैं, राक्षसों को मारते हैं और रावण के पुत्र अक्षयकुमार को भी मार डालते हैं — तब उन्हें पकड़कर रावण के दरबार में लाया जाता है।

रावण क्रोधित हो उठता है, पर वध नहीं करता क्योंकि वह उन्हें दूत मानता है। इसलिए किसी भी दूत को मर्त्यु की सजा नही दे सकते तब रावण ने अपने मंत्रियों के सुझाव पर वह आदेश देता है कि इसे मर्त्यु दंड न देकर “इस वानर की पूंछ में आग लगा दो, क्योंकि वानर अपनी पूंछ से ही खेलते हैं।”ओर इनको अपनी पूछ पर बहुत घमण्ड होता है इसीलिए रावण के सेनिको ने मर्त्यु दंड न देकर उन हनुमान जी की पूंछ में कपड़ा लपेटकर उसमें आग लगा दी पर हनुमंन्जी को घबराहट नही हुई और जलती पूछ को लेकर वो लंका में इधर उधर घूम घूम के घरों को जलाने लगे ओर घटना के अनुसार हनुमान जी ने उसी जलती हुई पूंछ से पूरी लंका को जला दिया सिवाय एक विभीषण के घर को छोड़ कर क्योकि विभीषण राम भक्त था और रावण की नगरी में राक्षक्ष ही थे ।यहां मेरी सोच के अनुसार ये एक आध्यात्मिक प्रसंग है जिसे अपनी भाषा मे लिखा गया है यह पूंछ में आग का अर्थ घोर अपमान याउनका तिरस्कार रावण ने सोचा कि हनुमान का अपमान होगा, पर वही अपमान उनके विनाश का कारण बन गया ओर जोहनुमान लंका में धर्म के प्रतिनिधि के रूप में गए थे रावण के द्वारा किये अपमान का कारण बन गया ओर रावण के राज्य को नुकसान का कारण मेरी नजर में ये रावण के अभिमान के पतन का कारण बना ।यहां आग से अर्थ है हनुमान जी मे क्रियाशील ता व चेतना या ज्ञान का होना उन्होंने आग को स्वम् का नुकसान न समझ कर रावण का ही उस आग से नुकसान कर दिया यहां पर मेरी फिर सोच के अनुसार जो कि आध्यात्मिक है में हनुमान की पूंछ में लगी अग्नि, वास्तव में ज्ञान और चेतना की अग्नि है। जब यह जागृत होती है, तो वह अधर्म रूपी लंका को जला डालती है।पर इसके बाद भी हनुमानजी स्ययम का इस्तेमाल किया और बुद्धि से कार्य किया इसे हम हनुमान का संयम और धैर्य कह सकते है पूंछ में आग लगने पर भी हनुमान क्रोधित होकर कोई अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नही करते क्योकि वो विद्वान वीर ओर समझदार दूत थे कुछ नही कहते चुपचाप सुन कर वे अपनी रणनीति से काम लेते हैं और फिर पूरी लंका को जला देते हैं।इससे हमें जो ज्ञानमिला वह था शक्ति और धैर्य मिलकर ही न्यायपूर्ण परिवर्तन लाते हैं।इस तरह से उनकी सोच व रणनीति ने माया और अहंकार का अंत किया जो लंका के नागरिक समझदार थे उन्ही के नष्ट कर दिया जो कि माया का प्रतीक मानी गई है। हनुमान जी ने दिखाया कि भक्ति, विवेक और राम-नाम की शक्ति से माया और अहंकार नष्ट हो जाते हैं। इस प्रसंग का आध्यात्मिक अर्थ:

  1. पूंछ में आग = अपमान या तिरस्कार

रावण ने सोचा कि हनुमान का अपमान होगा, पर वही अपमान उनके विनाश का कारण बन गया।

शिक्षा: धर्म के प्रतिनिधि का अपमान स्वयं के पतन का कारण बनता है।

  1. आग = क्रियाशील चेतना या ज्ञान

हनुमान की पूंछ में लगी अग्नि, वास्तव में ज्ञान और चेतना की अग्नि है। जब यह जागृत होती है, तो वह अधर्म रूपी लंका को जला डालती है।

  1. हनुमान का संयम और धैर्य

पूंछ में आग लगने पर भी हनुमान क्रोधित होकर तुच्छ प्रतिक्रिया नहीं देते — वे रणनीति से काम लेते हैं और फिर पूरी लंका को जला देते हैं।

शिक्षा: शक्ति और धैर्य मिलकर ही न्यायपूर्ण परिवर्तन लाते हैं।

  1. माया और अहंकार का अंत

लंका, जो सोने की थी, माया का प्रतीक है। हनुमान जी ने दिखाया कि भक्ति, विवेक और राम-नाम की शक्ति से माया और अहंकार नष्ट हो जाते हैं।

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