जीवात्मा के भीतर “अज़म” शब्द गुप्त रूप से विद्यमान है, अर्थात् वहाँ वह स्वरूप में छिपा हुआ है। लेकिन कमील दरवेश (पूर्ण संत या सूफी फकीर) के हृदय में यह अज़म प्रगट हो जाता है, चमकदार और स्पष्ट। इंसान को इसी अज़म की तलाश है, जो उसके भीतर ही बसता है—बाहर भटकने की क्या आवश्यकता? अपना ध्यान उसी अज़म से जोड़ लो, तो सारी खोज समाप्त हो जाएगी।सूफी दृष्टि में अज़म का रहस्यसूफी परंपरा में “अज़म” अल्लाह का एक गुप्त नाम है, जो हृदय के गहन कोने में निवास करता है। यह वह सर्वोच्च सत्ता है जो जीवात्मा को परमात्मा से जोड़ती है।गुप्त अवस्था: साधारण मनुष्य में अज़म “शब्द” के रूप में गुप्त रहता है, जैसे बीज भूमि में दबा होता है। कुरान की आयतों (जैसे सूरह अल-बकरा 2:1 “अलिफ़ लाम़ मीम़”) में ऐसे गुप्त अक्षरों का संकेत मिलता है, जिन्हें सूफी हृदय की कुंजी मानते हैं।प्रगट अवस्था: कमील दरवेश (जैसे रूमी, रबिया या बुलleh शाह जैसे सूफी संत) में यह प्रगट हो जाता है। ध्यान, जिक्र और फना (स्वयं का विलय) से यह ज्योति बनकर चमकता है।तलाश का मार्ग: बाहर मस्जिदों-मंदिरों में न भटको। हज़रत शम्स तबरेज़ कहते हैं, “तेरा रब तेरे हृदय में है।” मुराक़बा (ध्यान) करो, लाहूत (दिव्य नाम) का जिक्र करो—अज़म अपने आप प्रगट होगा।यह भक्ति और सूफी मार्ग का सार है: अंदर की खोज ही बाहर की मुक्ति है। गीता में भी श्रीकृष्ण कहते हैं, “मां तु वेष्ट्सरति सर्वं” (मैं सबमें व्याप्त हूँ)।
HomeVachanजीवात्मा के भीतर “अज़म” शब्द गुप्त रूप से विद्यमान है, अर्थात् वहाँ वह स्वरूप में छिपा हुआ है। लेकिन कमील दरवेश (पूर्ण संत या सूफी फकीर) के हृदय में यह अज़म प्रगट हो जाता है, चमकदार और स्पष्ट। इंसान को इसी अज़म की तलाश है, जो उसके भीतर ही बसता है—बाहर भटकने की क्या आवश्यकता? अपना ध्यान उसी अज़म से जोड़ लो, तो सारी खोज समाप्त हो जाएगी।सूफी दृष्टि में अज़म का रहस्यसूफी परंपरा में “अज़म” अल्लाह का एक गुप्त नाम है, जो हृदय के गहन कोने में निवास करता है। यह वह सर्वोच्च सत्ता है जो जीवात्मा को परमात्मा से जोड़ती है।गुप्त अवस्था: साधारण मनुष्य में अज़म “शब्द” के रूप में गुप्त रहता है, जैसे बीज भूमि में दबा होता है। कुरान की आयतों (जैसे सूरह अल-बकरा 2:1 “अलिफ़ लाम़ मीम़”) में ऐसे गुप्त अक्षरों का संकेत मिलता है, जिन्हें सूफी हृदय की कुंजी मानते हैं।प्रगट अवस्था: कमील दरवेश (जैसे रूमी, रबिया या बुलleh शाह जैसे सूफी संत) में यह प्रगट हो जाता है। ध्यान, जिक्र और फना (स्वयं का विलय) से यह ज्योति बनकर चमकता है।तलाश का मार्ग: बाहर मस्जिदों-मंदिरों में न भटको। हज़रत शम्स तबरेज़ कहते हैं, “तेरा रब तेरे हृदय में है।” मुराक़बा (ध्यान) करो, लाहूत (दिव्य नाम) का जिक्र करो—अज़म अपने आप प्रगट होगा।यह भक्ति और सूफी मार्ग का सार है: अंदर की खोज ही बाहर की मुक्ति है। गीता में भी श्रीकृष्ण कहते हैं, “मां तु वेष्ट्सरति सर्वं” (मैं सबमें व्याप्त हूँ)।