त्रि नेत्र का अभिप्राय है तीसरी आँख या आज्ञा चक्र, जो दोनों भौंहों के बीच, माथे पर स्थित होता है। यह चक्र इड़ा, पिंगला, और केन्द्रीय नाड़ी सुषुम्ना के मिलने का स्थान है, जिसे त्रिवेणी भी कहा जाता है। जब सुषुम्ना नाड़ी इस चक्र पर मिलती है और कुर्मा व मूर्धा के द्वारा सक्रिय होकर सहस्त्र चक्र (सहस्रार चक्र) तक पहुँचती है, तो यह साधक के भीतर दिव्य ज्ञान, चेतना और परमात्मा तत्व की प्राप्ति का मार्ग खुलता है।आज्ञा चक्र का खुलना व्यक्ति को त्रिकाल ज्ञान, आत्मा ज्ञान और देव दृष्टि प्रदान करता है। यह मन और बुद्धि का मिलन स्थान है, जहां से आदेश और दिशा मिलती है। जब आज्ञा चक्र जागृत होता है, व्यक्ति की चेतना संसार के भ्रमों से ऊपर उठती है और उसे उच्चतर आध्यात्मिक अनुभव होते हैं। सहस्त्र चक्र के खुलने से कुण्डलिनी ऊर्जा का सर्वोच्च स्वरूप अनुभव होता है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति सम्भव होती है।मुख्य बातें:त्रि नेत्र या आज्ञा चक्र तीन नाड़ियों (इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना) का संगम है, जो तृणद्वीणी के समान है।सुषुम्ना नाड़ी के माध्यम से ऊर्जा कुर्मा और मूर्धा के सहारे सहस्त्र चक्र तक पहुँचती है।आज्ञा चक्र का खुलना दिव्य दृष्टि, त्रिकाल ज्ञान, और आत्मिक आदेश प्राप्ति का केंद्र होता है।सहस्त्रार चक्र के खुलने पर परमात्मा तत्व का अनुभव और मोक्ष के द्वार खुलते हैं।इस प्रकार, आज्ञा चक्र के साथ त्रि नेत्र का अर्थ तीसरी आँख है जो आध्यात्मिक जागरण का अहम केंद्र है, और सहस्त्र चक्र के खुलने से निश्चय ही योगी के जीवन में परम आत्मा का अहसास और मोक्ष की प्राप्ति होती है