ध्यान योग में केवल्य की स्थिति

ध्यान योग (Meditation Yoga) में आत्मा की मुक्ति साक्षीभाव व समाधि द्वारा प्राप्त होती है। अंतिम अवस्था: निर्विचार समाधि / सहज समाधिमन के समस्त विचार, वृत्तियाँ और भाव रुक जाते हैं।साधक न तो ध्यान करने वाला रहता है, न ध्यान का विषय, केवल ध्यान स्वयं ही रह जाता हैध्यान की पराकाष्ठा में ध्यानकर्ता लुप्त हो जाता है।”ध्यान योग में केवल्य का अर्थ है — “शुद्ध साक्षीभाव में स्थित चैतन्य”, जो देह, मन, समय, और विचारों से परे होता है।
कुण्डलिनी जागरण के दृष्टिकोण से केवल्यकुण्डलिनी साधना में आत्मा की मुक्ति शक्ति (कुण्डलिनी) के शिव (सहस्रार) में लीन होने के माध्यम से होती है।
सात चक्रों से ऊपर उठना:
. मूलाधार से आरंभ होकर शक्ति ऊपर उठती है।
सहस्रार (सिर के शीर्ष पर) जब कुण्डलिनी मिलती है, तो “शिव-शक्ति का संयोग” होता हैकोई ध्वनि नहीं, कोई स्पंदन नहीं — अनाहत नाद भी लुप्त हो जाता है।साधक “शिव” बन जाता है — स्थितप्रज्ञ, पूर्ण, निर्विकल्प।जब शक्ति शिव में लीन होती है, तब ‘केवल्य’ घटित होता है।”इस मार्ग में केवल्य पूर्ण चेतना की स्थिति है, जहाँ चेतना और ऊर्जा (चेतन-शक्ति) एक हो जाती हैत्रिक दर्शन (कश्मीर शिवदर्शन) में केवल्यत्रिक (शैव) दर्शन में केवल्य को परम शिवभाव कहा गया शिवस्वरूप की स्थिति:आत्मा शिव के समान स्वतंत्र, अखंड, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान हो जाती है।यह कोई त्याग या विरक्ति नहीं है, बल्कि पूर्ण जागृति की अवस्था है।चित्तं मे शिवरूपं मेरा चित्त ही शिव है।केवल्य यहाँ क्या है?मैं” और “यह जगत” का भेद मिट जाता है।
शक्ति और शिव में कोई द्वैत नहीं रहता।त्रिक दर्शन में केवल्य का अर्थ है — जगद में स्थित रहकर भी पूर्ण ब्रह्मरूप होकर जीना।मार्ग केवल्य की अंतिम अवस्था

ध्यान योग ध्यानकर्ता का लय होकर शुद्ध चैतन्य में स्थिर होना
कुण्डलिनी योग शक्ति का सहस्रार में शिव से मिलन — पूर्ण तादात्म्य
त्रिक शिवदर्शन शिवस्वरूप में अपनी स्वतंत्र, अखंड, चेतन सत्ता में जागना

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