नाद ब्रह्म की प्राप्ति के बाद मोक्ष की स्तिथि कब किसी इंसान में अति है जब उसका कब्जा आंतरिक्ष में शून्यता में विलीन होता है यानी शून्य का शून्य में लय होना
नादब्रह्म की प्राप्ति और मोक्ष की स्थिति के संदर्भ में आपका प्रश्न गहन और दार्शनिक है। भारतीय दर्शन, विशेष रूप से वेदांत और योग दर्शन, में नादब्रह्म (ब्रह्मांड का मूल ध्वनि तत्व, ॐ या अनाहत नाद) की प्राप्ति आत्मा की उच्चतम आध्यात्मिक अवस्था से जुड़ी है। जब कोई व्यक्ति नादब्रह्म की अनुभूति प्राप्त करता है, तो वह अपने व्यक्तिगत अहंकार (ego) और भौतिक बंधनों से मुक्त होकर विश्व चेतना के साथ एकाकार हो जाता है।आपके प्रश्न में उल्लिखित “शून्य का शून्य में विलीन होना” उस अवस्था को संदर्भित करता है, जहां आत्मा पूर्ण रूप से अपनी व्यक्तिगत पहचान (जैसे देह, मन, और बुद्धि) को त्यागकर परम शून्यता या ब्रह्म में लीन हो जाती है। यह मोक्ष की अवस्था है, जिसमें आत्मा और परमात्मा के बीच का द्वैत समाप्त हो जाता है।मोक्ष प्राप्ति की स्थिति कब आती है?मोक्ष की स्थिति तब प्राप्त होती है, जब:आत्म-साक्षात्कार: व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त करता है और समझ लेता है कि वह स्वयं ब्रह्म है (अहं ब्रह्मास्मि)। यह नादब्रह्म की अनुभूति के माध्यम से हो सकता है, जहां व्यक्ति विश्व की मूल ध्वनि के साथ एकरूप हो जाता है।कर्म और माया से मुक्ति: सभी कर्मों (संचित, प्रारब्ध, और आगामी) का क्षय हो जाता है, और माया (भौतिक संसार का भ्रम) का प्रभाव समाप्त हो जाता है।शून्यता में विलय: जब व्यक्ति की चेतना पूर्ण रूप से शून्यता (निर्विशेष ब्रह्म) में विलीन हो जाती है, तो वह व्यक्तिगत अस्तित्व को त्यागकर अनंत में समाहित हो जाता है। यह “शून्य का शून्य में लय” है, जैसा कि आपने कहा।अंतरिक्ष में शून्यता और विलयआपके द्वारा उल्लिखित “अंतरिक्ष में शून्यता” को दार्शनिक रूप से समझें, तो यह उस अवस्था को इंगित करता है, जहां व्यक्ति की चेतना भौतिक और सूक्ष्म शरीरों (स्थूल, सूक्ष्म, और कारण शरीर) से परे चली जाती है। यह वह अवस्था है, जहां:नादब्रह्म का अनुभव: नाद (ध्वनि) ब्रह्मांड का मूल तत्व है, और इसकी अनुभूति के बाद व्यक्ति समय और स्थान की सीमाओं से मुक्त हो जाता है।शून्यता: यह शून्यता नकारात्मक रिक्तता नहीं, बल्कि पूर्णता है, जहां सभी द्वैत (द्वंद्व) समाप्त हो जाते हैं। यह निर्विकल्प समाधि की अवस्था है।विलय: आत्मा का परम शून्य (ब्रह्म) में लीन होना ही मोक्ष है। यह वह स्थिति है, जहां व्यक्ति का व्यक्तित्व पूर्ण रूप से “शून्य” होकर अनंत में विलीन हो जाता है।कब प्राप्त होती है यह स्थिति?यह स्थिति तब प्राप्त होती है, जब:व्यक्ति पूर्ण आत्म-नियंत्रण, ध्यान, और साधना के माध्यम से अपनी चेतना को शुद्ध करता है।वह सभी इच्छाओं, आसक्तियों, और अहंकार से मुक्त हो जाता है।नादब्रह्म की साधना (जैसे नादयोग या ॐ का जप) के माध्यम से वह परम चेतना के साथ एकाकार हो जाता है।देहत्याग के समय या जीवन्मुक्ति की अवस्था में यह विलय संभव है।संक्षेप में:नादब्रह्म की प्राप्ति के बाद मोक्ष तब प्राप्त होता है, जब व्यक्ति की चेतना पूर्ण रूप से शून्यता (निर्विशेष ब्रह्म) में विलीन हो जाती है। यह वह अवस्था है, जहां आत्मा का व्यक्तिगत अस्तित्व समाप्त होकर वह परम शून्य में लय हो जाता है। यह प्रक्रिया गहन साधना, आत्मज्ञान, और माया से मुक्ति के द्वारा संभव है