ध्यान से समाधि की ओर: अष्टांग योग का दिव्य मार्ग

पतांजलि योग के अनुसार ध्यान और समाधि की प्राप्ति अष्टांग योग के आठ चरणों के पालन से होती है: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि। ध्यान समाधि की ओर ले जाने वाला मार्ग है, जिसमें सबसे पहले धारणा (एकाग्रता) की जाती है, फिर धीरे-धीरे ध्यान की अवस्था में प्रवेश होता है और अंततः समाधि की गहन अवस्था में विलीन हो जाता है। समाधि वह अवस्था है जहां साधक अपने ध्यान के विषय में पूर्ण रूप से विलीन होकर अहंकार और व्यक्तिगत पहचान से मुक्त हो जाता है।ध्यान समाधि में पहुँचने के लिए मुख्यतः विरामप्रत्ययाभ्यास (प्रयत्नहीन सजग विश्राम) का अभ्यास आवश्यक है। यह सजग विश्राम निद्रा से अलग होता है क्योंकि इसमें सजगता बनी रहती है। साधक स्वयं के भीतर सजगता के साथ विश्राम अवस्था में स्थिर होता है, जिससे मन की सभी वृत्तियाँ (चंचलताएँ) शांत हो जाती हैं और चेतना के गहरे स्तरों का अनुभव होता है। इस प्रक्रिया में ध्यान का प्रभाव केवल वर्तमान जीवन में नहीं, बल्कि जीवात्मा के अनंत प्रवाह में भी होता है।अनाहद नाद की प्राप्ति भी इसी प्रक्रिया का एक हिस्सा है, जो समाधि की परा-स्थिति मानी जाती है। अनाहद नाद वह अनन्त और निरंतर ध्वनि है जो आंतरिक चेतना के स्तरों पर अनुभव होती है और जो बाहरी साधनों से उत्पन्न नहीं होती। इसे प्राप्त करने के लिए मन और प्राण का संयम, निरन्तर एकाग्रता और गहन ध्यान आवश्यक है।संक्षेप में ध्यान समाधि तक पहुँचने और अनाहद नाद प्राप्त करने के लिए पतांजलि योग में निम्न विधि अपनाई जाती है:अष्टांग योग के सभी चरण (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि) का समर्पित अभ्यास।मन की वृत्तियों को शांत करना और सजग, परंतु प्रयत्नहीन विश्राम (विरामप्रत्ययाभ्यास) की अवस्था में स्थिर रहना।एकाग्रता और ध्यान के माध्यम से आत्मनिरीक्षण और चेतना के उच्च स्तरों तक पहुँचना।समाधि में विलीन होकर अहंकार तथा व्यक्तिगत सीमाओं से मुक्त होना।अनाहद नाद का अनुभव करने के लिए मन, प्राण और चेतना के संयम की गहन साधना।यह प्रक्रिया निरंतर अनुशासन, समर्पण और गुरु के मार्गदर्शन के अंतर्गत सम्भव होती है। पतांजलि के योग सूत्र भी यही बताते हैं कि समाधि का अनुभव आत्मा के वास्तविक स्वरूप को समझने एवं ब्रह्म के साथ एकत्व प्राप्त करने का माध्यम है।इस प्रकार, पतांजलि योग के अनुसार ध्यान समाधि में पहुँचने और अनाहद नाद प्राप्त करने के लिए अष्टांग योग के संतुलित अभ्यास, मन-वृत्ति नियंत्रण और सजग विश्राम की गहरी साधना आवश्यक है

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