प्राण प्रतिष्ठा: जब मूर्ति बनती है चेतना और दिव्य ऊर्जा का माध्यम

मूर्तियों में संत लोग अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा और संकल्प के द्वारा प्राण भरते हैं, इसे प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं। यह प्रक्रिया मंत्रों का जाप, साधना, प्रेम और तीव्र श्रद्धा से होती है। जब कोई सिद्ध पुरुष या योगी अपने संकल्प, ध्यान और प्राण शक्ति से मूर्ति को स्पर्श करता है और मंत्रों का उच्चारण करता है, तो वह मूर्ति जागृत और चेतन बन जाती है। मूर्ति में उस ऊर्जा का संचार होता है, जैसे हमारे शरीर में प्राण का संचार होता है।ऐसे व्यक्ति प्राण पंचभूतों से परे प्राण तत्व को जानते हैं, जिससे वे अपनी आध्यात्मिक चेतना मूर्ति में स्थानांतरित कर सकते हैं। किसी मूर्ति में संतों की प्राण प्रतिष्ठा द्वारा वह मूर्ति जीवंत हो जाती है और भक्त उस मूर्ति की उपासना से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करता है। इसके अलावा, भक्तों की दृढ़ श्रद्धा और जप से भी मूर्ति में चेतना का संचार होता रहता है। इस प्रकार, मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा एक प्रकार की आध्यात्मिक क्रिया है जो योगी, साधक और भक्त की ऊर्जा एवं संकल्प से संपन्न होती है।इस प्रक्रिया के दौरान विशेष मंत्रोच्चार, तंत्र प्रयोग, औषधि, वस्त्र और संत के आध्यात्मिक स्पर्श का भी योगदान होता है, जो मूर्ति को जागृत रखने में समर्थ होता है। अतः मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा संत के संकल्प, प्राण शक्ति, मंत्रों और भक्त की श्रद्धा से संभव होती है, जिससे मूर्ति में आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाहित होकर वह जीवंत प्रतीत होती है।

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