मेरे पिताजी का अपने शिष्यों को कहा करते थे अध्यायातम में “मर जाओ इससे पहले कि मौत तुम्हें मार दे”। यह अहंकार त्यागकर विनम्र जीवन जीने की शिक्षा देती है। आध्यात्मिक महत्वयह सूफी संतों की वाणी से प्रेरित है, जो इंसान को जीते जी नश्वरता का बोध कराकर आत्म-समर्पण सिखाती है। भक्ति और योग परंपराओं में भी समान भाव मिलता है, जहाँ अहंकार का मरण ही मुक्ति का द्वार है। व्यावहारिक उपयोगयह कहावत जीवन में घमंड छोड़ने, सादगी अपनाने की याद दिलाती है। आधुनिक संदर्भों में ध्यान और ध्यानाभ्यास के लिए प्रेरणा देती है, ताकि मृत्यु से पूर्व ही आंतरिक शांति प्राप्त हो। यह सूफी वचन जीते जी अहंकार का त्याग कर ईश्वर में लीन होने की शिक्षा देता है। योग और भक्ति में इसे ‘अहं-मरण’ कहा जाता है, नश्वरता बोध से मुक्ति प्राप्ति। व्यावहारिक महत्वदैनिक जीवन में विनम्रता और सादगी अपनाने की प्रेरणा। ध्यान में उपयोग से आंतरिक शांति मिलती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *