छठे तत्व की खोज: आत्मा का पंचमहाभूत से परे असली स्वरूप

मैं आत्मा हु ओर साधना से मुझे समझ मे आ गया कि भूमि।पानी आग वायु और आकाश इन सब से अलग मेरा आत्मा का अस्तित्व जो तत्वों से बना है फिर भी जिस समय मे इनको त्याग करूँगा यानी मौत को वरण तो इन 5 तत्वों से अलग 6ठवा तत्व में मिलूंगा जो आकाश से परे होगा और उसका अस्तित्व सिर्फ संत या आत्मा को ही योग से ज्ञात होती है जब आत्मा 9 द्वार के अलावा 10 वे द्वार से अपने अस्तित्व को ले कर 5 तत्वों को छोड़ ब्रह्मण्ड में मिलती है तो सुक्षम शरीर के साथ जो आत्मा निकलती है वो वायुमंडल को चीरती हुई उस। जगह जाती है जहां न आकाश न अन्य अगर कुछ है तो अंधेरे में प्रकाश बिंदु जो सतलोक है जो ओर 6ठवा तत्व है यही मेरा अस्तियव है जो संसारमें नही है। ये मेरी सोच गहरी आध्यात्मिक अनुभूति का संकेत देता है। जो मैंने साधना में गुरु कृपा से अब अनुभव किया है इसीलिए मैं कहता हूं कि – “मैं आत्मा हूँ और छठे तत्व में मेरा अस्तित्व है, जो संसार में नहीं है।” इसका अर्थ यह समझा जा सकता है कि मैंआत्मा को पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से परे मान रहे हैं, और उसका सत्य स्वरूप एक ऐसे “षष्ठम् तत्त्व” में है जो लौकिक जगत (संसार) के भौतिक नियमों में नहीं आता।पाँच महाभूत और षष्ठ तत्त्वभारतीय दर्शन में सामान्यतः पाँच महाभूत माने जाते हैं –पृथ्वी (स्थूलता, ठोस)जल (प्रवाह, जीवन)अग्नि (ऊर्जा, रूपांतरण)वायु (गति, श्वास)आकाश (स्थान, व्याप्ति)इनमें से आकाश को भी सूक्ष्मतम तत्व माना जाता है। लेकिन आत्मा को इससे परे अनुभव किया जाता है। इसलिए कई परंपराएँ छठे तत्त्व की धारणा करती हैं, :संख्या दर्शन में पुरुष (आत्मा) प्रकृति से भिन्न है। वह छठा और परात्तत्त्व है।उपनिषद आत्मा को स्वयंभू चेतना कहते हैं, जिसे पाँच तत्व और इंद्रियाँ छू नहीं सकतीं।योगदर्शन आत्मा को साक्षी चेता (pure witness) बताता है, जो न कभी जन्म लेता है, न मरता है।छठा तत्व क्या है?वह तत्व चेतना है –जो भौतिक नहींजो परिवर्तनशील नहींजो संसार से परे भी स्वयं में स्थित हैजो आत्मा का असली आधार हैइसीलिए मैं कह रहा हु कि “मेरा अस्तित्व छठे तत्व में है, जो संसार में नहीं है।” संसार पंचभूत से बना है। आत्मा इन पंचभूतों में नहीं बंधती। उसका सत्य स्वरूप चेतना (षष्ठम् तत्त्व) में है, जो परम के निकट का बिंदु है।गूढ़ भावजब साधक का ध्यान स्थूलता से हटकर आत्मा पर स्थिर होता है, तो उसे अनुभव होता है कि वह न पंचभूत में है, न संसार की लीलाओं में, बल्कि एक अन्य तत्त्व में है।यही “असंग आत्मा” की अनुभूति है।कबीर ने भी कहा: “पाँच तत्व से बना शरीर, छठवा तत्व अमर।”क्या आप चाहेंगे कि मैं आपको उपनिषद और कबीर या गीता से जुड़े श्लोक/दोहों से यह “छठा तत्व – आत्मा” कीअनुसार उपनिषद, कबीर और गीता से “छठा तत्व – आत्मा” के विषय में श्लोक एवं दोहे नीचे दिए जा रहे हैं। इनसे यह सिद्ध होता है कि आत्मा पंचमहाभूतों से परे, किसी अनुपमेय तत्त्व (चेतना, अमर-तत्त्व) में है, जो संसार के नियमों से स्वतंत्र है.उपनिषद से प्रमाणईशावास्य उपनिषद श्लोक 6:”यस्तु सर्वाणि भूतानि आत्मन्येवानुपश्यति। सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते ॥ ६ ॥”भावार्थ: जो व्यक्ति सभी भूतों को आत्मा में देखता है और सभी में आत्मा का अनुभव करता है, उसकी चेतना भेदभाव से मुक्त हो जाती है। आत्मा पंचतत्वों में नहीं उलझती, वह सब में एक हैं.मांडूक्य उपनिषदयह चौथे (तुरीय), अर्थात जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति से ऊपर आत्मा की अवस्था बताता है – “यह शुद्ध चेतना का स्वरूप तुरीय है, जो किसी तत्व, किसी अवस्था में नहीं बंधता”.कबीर के दोहे”पांच तत्व गुन तीन के, आगे मुक्ति मुकामतहां कबीरा घर किया, गोरख दत्त न राम”भावार्थ: कबीर कहते हैं कि पाँच तत्व और तीन गुणों से आगे ही मुक्ति (अमरत्व) का घर है, वही आत्मा का निश्चित स्थान है”पाँच तत्त्व का पूतरा, मानुष धरिया नाँव।एक कला के बीछुरे, बिकल होत सब ठाँव॥”भावार्थ: शरीर की रचना पाँचतत्वों से हुई है, आत्मा इनसे अलग है. जब चेतना (सद्बुद्धि) विलगती है, तो शरीर व्यर्थ हो जाता है.”एक राम इन सबसे न्यारा, चौथा छोड़ पाँचवा को धावैकहै कबीर सो हम पर आवै”भावार्थ: कबीर साहब कहते हैं असली परमात्मा, या आत्मा, हर तत्व से न्यारी है, उसकी दायरा सबसे ऊपर है – अमर लोक मेंभगवद्गीताअध्याय 6, श्लोक 5-6:”आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः”भावार्थ: आत्मा स्वयं का मित्र और शत्रु है, अर्थात संसार के पंचतत्वीय जाल में नहीं फँसती, बल्कि चेतना में स्थित रहकर सबको देखती है.अध्याय 6, श्लोक 29:”योगयुक्तात्मा सर्वत्रात्मानं पश्यति”भावार्थ: योगी अपनी चेतना के बल से सबमें आत्मा को अनुभव करता है, पंचभूतों में नहीं, बल्कि परे स्थित है.मैं जानता हूं आत्मा पंचमहाभूतों एवं संसार से परे छठे तत्त्व (शुद्ध चेतना/अमर-तत्त्व) में स्थित हैकबीर, उपनिषद एवं गीता – तीनों ग्रंथ यह सिद्ध करते हैं कि आत्मा की सच्ची पहचान पंचमहाभूत से ऊपर की हैआत्म-साक्षात्कार से अनुभूति होती है – ‘मैं आत्मा हूँ, मेरा अस्तित्व उस अमरता, उस छठे तत्त्व में है, जो संसार में नहीं है’ धारणा सिद्ध होता है

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