लव-कुश और रामायण का उत्तरकांड: एक सांकेतिक अनुशीलन अध्याय है जो बहुत कुछ शिक्षा हमे देता है माता पिता के गुण बच्चो में जन्म जाट होते है दूसरा राज्य वंसज होना तीसरा आध्यात्मिक और संसारिक गुरु भौतिक दुनिया और आध्यात्मिक दुनिया की शिक्षा में परीपक़व्व होना दोंनो तरह की शिक्षा में राम नई जब अश्व मेघ यज्ञ किया विश्क विजेता बनने के लिए तो वह पूर्ण नही थी उन्होंने सीता के जीवित होते उनकी मूर्ति रही जो पूर्ण सजीव नही थी क्योंकि सीता की आत्मा स्वम् में थी जो मूर्ति में प्रेवेश नही कर पाई और साधना अधूरी लव कुश के कारण रही एक अश्व मेघ यज्ञ में परिवार का उपस्तिथ रहना व कर्म।करना जरूरी है राम द्वारा किया अश्वमेध यज्ञ को उनके यशस्वी पुत्र जो पूर्ण रूप से गुरु की शिक्षा व ज्ञान व युद्ध के तरीकों की जानकारी से पूर्ण थे ने जब अश्व कोवनभूमि में रोकते हैं, तब वह केवल एक युद्ध का आह्वान नहीं होता, अपितु धर्म और आत्मबोध की पुकार होती है। लव और कुश—जिनकी वाणी में श्लोक हैं और भुजाओं में वीरता—वे केवल ऋषिकुमार नहीं, सत्य की अग्नि में तपे हुए आत्मबल के प्रतीक हैं।

वाल्मीकि आश्रम, जहाँ शब्द ब्रह्म बनते हैं, वहाँ लव-कुश ने न केवल शस्त्र विद्या पाई, बल्कि जीवन के गूढ़ रहस्यों की शिक्षा भी। उनकी शक्ति किसी राजवंशीय उत्तराधिकार की नहीं, अपितु गुरु की तपशक्ति और माता की साध्वीता की उपज थी।

जब वे घोड़े को रोकते हैं, तो वह एक प्रतीकात्मक संकल्प है — अधर्म के विरुद्ध धर्म की हुंकार, और यह हुंकार इतनी प्रबल है कि स्वयं राम और लक्ष्मण को रणभूमि में उतरना पड़ता है।ओर कोई ही युद्ध मे लड़ने का अधिकार नही रखता था सभी इस यज्ञ के लिए पूर्ण नही थेराम, जो धर्म के साक्षात मूर्तिमान रूप हैं, और लव-कुश — जो उसी धर्म की नई परिभाषा — जब आमने-सामने आते हैं, तब यह दृश्य केवल युद्ध नहीं, आत्मस्मरण का क्षण बन जाता है। पुत्र पिता को अनजाने में चुनौती देता है, और पिता संतान को अपरिचित शत्रु मानता है। यह माया और आत्मज्ञान का अद्भुत समागम है।जो ऋषि कर तपोबल के कारण ही सम्पन्न हुवा इसके बाद आता है वह क्षण जब सीता उस स्थान पर सशरीर उपस्तिथ होती है देखा जाए तो ये वही समय होता है जब राम की पूजा सीता के साथ उस युद्ध मे पूर्ण होती है और फिर आता है वह करुण क्षण जब सीता स्वम् उवास्तिथ हो उनको पुत्रो का राज बता कर स्वम् को मौत के आगोश में ले लेती है क्योंकि उसे वलास जाना नही था मोक्ष के—अलावा और कोई रास्ता सीता के लिए नहीं था इसलिए वो प्रति तत्व जो मौत के लिए सिंघासन होता है उसे सिंहसन मान। कर का पृथ्वी में लीन हो हो गई जो स्वाम समाधि लेने की परिकाष्ठा हस । यह कोई पलायन नहीं, अपितु संस्कारों से पूरित आत्मसम्मान की अंतिम अभिव्यक्ति है। वह जनकनंदिनी, जो जीवन भर अग्निपरीक्षाओं से गुज़री, अंततः उसी धरती में समा जाती हैं, जिससे वह जन्मी थीं।

यह संपूर्ण प्रसंग मात्र इतिहास नहीं, अपितु एक धार्मिक-दार्शनिक संवाद है।
यह दर्शाता है कि—

सत्य की रक्षा के लिए आयु, वंश और स्थिति गौण हो जाती है

गुरु की दीक्षा संतान को देवों से भी प्रबल बना सकती है

और नारी जब अपमानित होती है, तब प्रकृति स्वयं उसे वापस ले लेती है

लव आत्मा में प्रेम और भक्ति
कुश मन में विवेक और ज्ञान का प्रतीक माना गया है और डोंयो उच्च स्तर पर थे
आश्रम साधना और आत्मनिर्माण
घोड़ा रोकना अहंकार पर नियंत्रण
युद्ध आत्म और अहं का संघर्ष
राम का पहचानना आत्मबोध
सीता का पृथ्वी में जाना मोक्ष / प्रकृति में लय
मेरी दृस्टि में ये विवेचन आध्यात्मिक है ये मेरी भावना है गलत लगे तो डिलीट कर मुझे माफ कर दे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *