वेदों में अनहद नाद का वर्णन अप्रत्यक्ष रूप से ‘नाद ब्रह्म’ या आदि शब्द के रूप में मिलता है, जो सृष्टि की मूल ध्वनि और ॐकार को दर्शाता है। यह आंतरिक दिव्य गूंज के रूप में साधना से अनुभव होने वाली अनाहत ध्वनि का प्रतीक है। ऋग्वेद संदर्भऋग्वेद के नासदीय सूक्त (10.129) में सृष्टि पूर्व की अनादि अवस्था का वर्णन है, जहाँ ‘अनहद’ जैसी शून्य ध्वनि से ब्रह्मांड की उत्पत्ति का संकेत मिलता है। ‘तत्सवितुर्वरेण्यं’ मंत्र में नाद को प्रकाश और चेतना का आधार बताया गया, जो ध्यान में अनुभव होता है। सामवेद और अन्यसामवेद में ॐ को ‘उद्गीथ’ कहा गया, जो अनहद नाद की प्रारंभिक ध्वनि है—समुद्र की गर्जना, मेघनाद जैसी। ब्रह्मसूत्र में स्पष्ट कहा गया कि शब्द से मोक्ष प्राप्ति होती है, जो अनहद का ही रूप है। महत्वये वर्णन नाद को परमात्मा का स्वरूप बताते हैं, जो साधना से सुनकर समाधि और मोक्ष मिलता है। उपनिषद इन्हीं पर विस्तार करते हैं।नहीं, बिना गुरु की दीक्षा (तवज्जुह), अनहद नाद के अनुभव और सच्चे ज्ञान के सिमरन मात्र से पूर्ण मोक्ष प्राप्ति अत्यंत दुर्लभ और शास्त्रों में अस्वीकार्य मानी जाती है। अधिकांश संतमत, राधास्वामी और सूफी परंपराओं में गुरु ही सच्चा ज्ञान प्रदान करता है, जो सिमरन को प्रभावी बनाता है। गुरु की अनिवार्यतागुरु बिना सिमरन अधूरा रहता है, क्योंकि तवज्जुह (सूफी में नूर हस्तांतरण) या दीक्षा से ही आत्मा का आंतरिक जागरण होता है। कबीर साहेब फरमाते हैं कि गुरु बिन ज्ञान न उपजै, मोक्ष न मिलै। अनहद नाद का अनुभव भी गुरु कृपा से ही स्थायी बनता है, अन्यथा भ्रम उत्पन्न होता है।ज्ञान का स्रोतज्ञान गुरु के शब्दों, सत्संग और तवज्जुह से आता है, जो शिष्य को माया से ऊपर उठाता है। बिना इसके सिमरन मनमाना हो जाता है, जो शास्त्रों में व्यर्थ बताया गया है। सूफी सिलसिलों में भी मुर्शिद का नूर ही रूहानी तरक्की का आधार है। अपवाद और सलाहकुछ अपवाद जैसे अजामिल की कथा में नाम जप से कल्याण हुआ, किंतु पूर्ण मोक्ष के लिए गुरु आवश्यक है। निरंतर प्रिय नाम सिमरन करें, शास्त्र पढ़ें—यह गुरु प्राप्ति कराएगा। सत्संग से जुड़ें, क्योंकि बिना मार्गदर्शक के मोक्ष कठिन हैअनहद नाद अनुभव के बिना भी मुक्ति संभव मानी जाती है, लेकिन यह भक्ति मार्ग, नाम जप या शुद्ध ज्ञानयोग से दुर्लभ रूप से प्राप्त होती है। शास्त्रों में अजामिल जैसे उदाहरण दिखाते हैं कि प्रेमपूर्ण नाम स्मरण मात्र से कल्याण हो सकता है। भक्ति मार्गभक्ति में रामकृष्ण परमहंस जैसे संतों ने बिना अनहद के ईश्वर प्राप्ति की, जहां प्रेम और समर्पण ही मुक्ति का द्वार खोलते हैं। नाम जप की शक्ति इतनी प्रबल है कि यह माया बंधनों को तोड़ देती है, भले अनहद न सहे। गीता में भक्ति को सर्वोत्तम बताया गया है।ज्ञानयोगअद्वैत वेदांत में ‘नेति नेति’ चिंतन या आत्मानुसंधान से बिना नाद के ब्रह्मज्ञान संभव है। उपनिषद कहते हैं कि शुद्ध बुद्धि से आत्मा का साक्षात्कार मोक्ष देता है। हनुमान जी का उदाहरण है जहां भक्ति ने बिना योग नाद के राम प्राप्ति कराई।सलाहनिरंतर प्रिय नाम सिमरन और शास्त्राध्याय से प्रयास करें, अनहद स्वतः जागेगा या वैकल्पिक मार्ग खुलेगा। सत्संग से गुरु कृपा मिलेगी, जो मुक्ति सरल बनाएगी।
HomeVachanवेदों में अनहद नाद का वर्णन अप्रत्यक्ष रूप से ‘नाद ब्रह्म’ या आदि शब्द के रूप में मिलता है, जो सृष्टि की मूल ध्वनि और ॐकार को दर्शाता है। यह आंतरिक दिव्य गूंज के रूप में साधना से अनुभव होने वाली अनाहत ध्वनि का प्रतीक है। ऋग्वेद संदर्भऋग्वेद के नासदीय सूक्त (10.129) में सृष्टि पूर्व की अनादि अवस्था का वर्णन है, जहाँ ‘अनहद’ जैसी शून्य ध्वनि से ब्रह्मांड की उत्पत्ति का संकेत मिलता है। ‘तत्सवितुर्वरेण्यं’ मंत्र में नाद को प्रकाश और चेतना का आधार बताया गया, जो ध्यान में अनुभव होता है। सामवेद और अन्यसामवेद में ॐ को ‘उद्गीथ’ कहा गया, जो अनहद नाद की प्रारंभिक ध्वनि है—समुद्र की गर्जना, मेघनाद जैसी। ब्रह्मसूत्र में स्पष्ट कहा गया कि शब्द से मोक्ष प्राप्ति होती है, जो अनहद का ही रूप है। महत्वये वर्णन नाद को परमात्मा का स्वरूप बताते हैं, जो साधना से सुनकर समाधि और मोक्ष मिलता है। उपनिषद इन्हीं पर विस्तार करते हैं।नहीं, बिना गुरु की दीक्षा (तवज्जुह), अनहद नाद के अनुभव और सच्चे ज्ञान के सिमरन मात्र से पूर्ण मोक्ष प्राप्ति अत्यंत दुर्लभ और शास्त्रों में अस्वीकार्य मानी जाती है। अधिकांश संतमत, राधास्वामी और सूफी परंपराओं में गुरु ही सच्चा ज्ञान प्रदान करता है, जो सिमरन को प्रभावी बनाता है। गुरु की अनिवार्यतागुरु बिना सिमरन अधूरा रहता है, क्योंकि तवज्जुह (सूफी में नूर हस्तांतरण) या दीक्षा से ही आत्मा का आंतरिक जागरण होता है। कबीर साहेब फरमाते हैं कि गुरु बिन ज्ञान न उपजै, मोक्ष न मिलै। अनहद नाद का अनुभव भी गुरु कृपा से ही स्थायी बनता है, अन्यथा भ्रम उत्पन्न होता है।ज्ञान का स्रोतज्ञान गुरु के शब्दों, सत्संग और तवज्जुह से आता है, जो शिष्य को माया से ऊपर उठाता है। बिना इसके सिमरन मनमाना हो जाता है, जो शास्त्रों में व्यर्थ बताया गया है। सूफी सिलसिलों में भी मुर्शिद का नूर ही रूहानी तरक्की का आधार है। अपवाद और सलाहकुछ अपवाद जैसे अजामिल की कथा में नाम जप से कल्याण हुआ, किंतु पूर्ण मोक्ष के लिए गुरु आवश्यक है। निरंतर प्रिय नाम सिमरन करें, शास्त्र पढ़ें—यह गुरु प्राप्ति कराएगा। सत्संग से जुड़ें, क्योंकि बिना मार्गदर्शक के मोक्ष कठिन हैअनहद नाद अनुभव के बिना भी मुक्ति संभव मानी जाती है, लेकिन यह भक्ति मार्ग, नाम जप या शुद्ध ज्ञानयोग से दुर्लभ रूप से प्राप्त होती है। शास्त्रों में अजामिल जैसे उदाहरण दिखाते हैं कि प्रेमपूर्ण नाम स्मरण मात्र से कल्याण हो सकता है। भक्ति मार्गभक्ति में रामकृष्ण परमहंस जैसे संतों ने बिना अनहद के ईश्वर प्राप्ति की, जहां प्रेम और समर्पण ही मुक्ति का द्वार खोलते हैं। नाम जप की शक्ति इतनी प्रबल है कि यह माया बंधनों को तोड़ देती है, भले अनहद न सहे। गीता में भक्ति को सर्वोत्तम बताया गया है।ज्ञानयोगअद्वैत वेदांत में ‘नेति नेति’ चिंतन या आत्मानुसंधान से बिना नाद के ब्रह्मज्ञान संभव है। उपनिषद कहते हैं कि शुद्ध बुद्धि से आत्मा का साक्षात्कार मोक्ष देता है। हनुमान जी का उदाहरण है जहां भक्ति ने बिना योग नाद के राम प्राप्ति कराई।सलाहनिरंतर प्रिय नाम सिमरन और शास्त्राध्याय से प्रयास करें, अनहद स्वतः जागेगा या वैकल्पिक मार्ग खुलेगा। सत्संग से गुरु कृपा मिलेगी, जो मुक्ति सरल बनाएगी।