वेदों में वर्णित नाद ब्रह्म वह दिव्य अनाहत ध्वनि है जो ब्रह्म के स्वरूप और परमात्मा का अनंत, नित्य और शुद्ध स्वरूप है। इसे शब्द ब्रह्म, शाब्दिक ब्रह्म या अनाहत नाद के रूप में भी जाना गया है। नाद ब्रह्म वह आत्मीय और परमसत्तात्मक ध्वनि है, जो मन और चित्त को स्थिर करती है और अंततः आत्मा को परमात्मा में विलीन करती है। उक्त स्वरूप का प्रमाण नादबिन्दूपनिषद् जैसे उपनिषदों में मिलता है, जिसमें कहा गया है कि नाद ब्रह्म ज्योतिर्मय शिव है, जो समस्त चिन्ताओं से ऊपर होकर साधक के मन को स्थिर कर देता है और उसे शुद्धचित्त बनाता है।वेद और उपनिषदों के अनुसार, नाद ब्रह्म की साधना से जुड़ी विशेषताएं और प्रभाव हैं:नाद ब्रह्म में जो ध्यान और अनुभूति होती है उससे व्यक्ति की मानसिक हलचल, कष्ट, और दोष दूर हो जाते हैं।यह नाद बाह्य (बाहर की आकाशीय आवाज़ों) और अंतः नाद (भीतर से उत्पन्न होने वाली शब्द स्पष्ट अनुभूति) में विभक्त है।वेदों में बताया गया है कि जो साधक इस नाद की साधना करता है, वह इच्छानुसार मृत्यु को जीत सकता है, सर्वज्ञ तथा सिद्ध बनता है और उसके नित्य कष्टों का अंत होता है।संगीत की उत्पत्ति भी नाद से होती है, जो ब्रह्म का स्वरूप माना गया है। नाद के स्वरूप में दिव्यता, स्थिरता, और जीवों के भीतर समान रूप से प्रवाहित होने वाली ऊर्जा शामिल है। इसके माध्यम से मनुष्य को अनंत शांति, एकत्व और परम ज्ञान की प्राप्ति होती है।इस प्रकार, वेदों और उपनिषदों के प्रमाण से यह स्पष्ट है कि नाद ब्रह्म जीवन में दुर्लभ और महत्त्वपूर्ण है, जो साधना द्वारा ही प्राप्त होता है और जो मन को परमात्मा के साथ जोड़कर मोक्ष की ओर ले जाता है। इसे पाने वाले साधक विश्व के लाखों में भी एक होते हैं क्योंकि यह उच्चतम आध्यात्मिक अनुभव है, जिसका सीधा संबंध चेतना के परम स्वरूप से है