शरीर, मन और आत्मा पर नियंत्रण की साधनामनुष्य की आत्मिक यात्रा तीन प्रमुख चरणों से होकर गुजरती है —शरीर का संयम, मन की स्थिरता, और अंतत आत्मा का साक्षात्कार।इन तीनों पर क्रमशः नियंत्रण स्थापित कर ही साधक पूर्णता की ओर बढ़ता हैशरीर पर नियंत्रण – (इंद्रिय संयम शरीर इंद्रियों का आसन है। यदि शरीर अस्थिर, रोगी अथवा आलसी है, तो साधना संभव नहीं हो पाती। अतः सर्वप्रथम आवश्यक है कि शरीर पर पूर्ण संयम स्थापित किया जाये व नियमित एवं सात्विक आहार लें।योगासन और प्राणायाम के माध्यम से शरीर को स्वस्थ एवं सशक्त रखें।निद्रा, श्रम, विश्राम और आहार में संतुलन बनाए रखें।इंद्रियों पर संयम रखें – दृष्टि, स्वाद, स्पर्श आदि का नियंत्रण साधेंशरीर जब संयमित होता है, तब वह साधना का सहयोगी बन जाता है — विरोधी नहीं। मन पर नियंत्रण – (चित्त की शुद्धि)मन अत्यंत चंचल है। वह निरंतर भूत, भविष्य और वासनाओं की ओर दौड़ता रहता है। साधना का मार्ग तभी प्रशस्त होता है जब मन शांत, स्थिर और एकाग्र हो।प्रतिदिन ध्यान का अभ्यास करें — श्वास पर या किसी मंत्र पर ध्यान केंद्रित करेंजप करें — “ॐ”, “सोऽहम्”, या किसी इष्ट मंत्र का नियमित उच्चारण।शुभ और सात्विक विचारों का चयन करें। नकारात्मक विचारों से दूर रहें।वैराग्य (विषयों से अनासक्ति) और विवेक (सत्य-असत्य का ज्ञान) को जीवन में स्थान दें।मन जब नियंत्रित होता है, तब आत्मा की झलक मिलने लगती हैआत्मा पर नियंत्रण नहीं, आत्मा का साक्षात्कार – (स्वरूप की प्रतीति)आत्मा कोई वस्तु नहीं है जिस पर नियंत्रण किया जाए।वह स्वयं हमारा शुद्ध स्वरूप है —निर्मल, अचल, साक्षी, सर्वत्र व्याप्त।इसलिए लक्ष्य नियंत्रण नहीं, बल्कि आत्मा का अनुभव हैआत्मविचार करें: “मैं कौन हूँ?” — शरीर, मन, विचार, अनुभव — इनमें से मैं कौन नहीं हूँ?साक्षी भाव अपनाएँ: प्रत्येक विचार, अनुभव और भावना को एक साक्षी की भाँति देखेंउपनिषदों और भगवद्गीता के ज्ञान का अध्ययन करेंगुरु की शरण में जाकर शास्त्रों का श्रवण, मनन और निदिध्यासन करें।जब आत्मा का साक्षात्कार होता है, तब साधक मुक्त हो जाता है। फिर उसे कुछ भी साधने की आवश्यकता नहीं रहती —वह स्वयं में स्थित, पूर्ण और स्वतंत्र हो जाता है निम्मन तरह सेशरीर योग, संयम, सात्विकता स्वास्थ्य और स्थिरता मन ध्यान, जप, वैराग्य शांति और एकाग्रताआत्मा आत्मविचार, साक्षी भाव आत्मसाक्षात्कार