शरीर, मन और आत्मा भारतीय दर्शन में अलग-अलग स्तरों पर अस्तित्व रखते हैं, जहाँ आत्मा को शाश्वत और स्वतंत्र माना जाता है जबकि शरीर व मन क्षणभंगुर हैं। वेदांत और उपनिषदों के अनुसार आत्मा न तो शरीर में निवास करती है और न ही उसके परिवर्तनों से प्रभावित होती है। वेदांत दर्शन में भेदवेदांत में आत्मा को सच्चिदानंद स्वरूप कहा गया है, जो अनंत, नित्य और जन्म-मृत्यु से परे है। शरीर स्थूल शरीर (स्थूल शरीरा) है जो भोजन पर निर्भर रहता है, मन सूक्ष्म शरीर (लिंग शरीरा) का भाग है जिसमें चित्त, बुद्धि और अहंकार शामिल हैं। आत्मा इन तीनों शरीरों—स्थूल, सूक्ष्म और कारण—से परे साक्षी मात्र है। भगवद्गीता का विवेचनभगवद्गीता (अध्याय 2, श्लोक 20) स्पष्ट करती है कि आत्मा नाशरहित है, जबकि शरीर-मन परिवर्तनशील हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जैसे वस्त्र बदलते हैं, वैसे ही जीवात्मा शरीर त्यागती है, पर स्वयं अजर-अमर रहती है। यह भेद समझने से अहंकार का तादात्म्य टूटता है और जीव ब्रह्म से एकाकार हो जाता है। योग और आचार्य दृष्टियोग दर्शन में पतंजलि चित्तवृत्ति निरोध को योग कहते हैं, जो शरीर-मन को शुद्ध कर आत्मा तक ले जाता है। आचार्य प्रशांत जैसे विद्वान जोर देते हैं कि आत्मा का शरीर से कोई संबंध नहीं, यह निरंजन चेतना है। कुंडलिनी योग में भी चक्र जागरण से इनका भेद अनुभव होता है।उपनिषदों में आत्मा को शुद्ध चेतना, सच्चिदानंद स्वरूप और ब्रह्म का अभिन्न अंश बताया गया है। यह नित्य, अविनाशी और अनंत है, जो शरीर, मन या इंद्रियों से परे साक्षी भाव में स्थित रहती है। आत्मा-ब्रह्म अभेदउपनिषद जैसे बृहदारण्यक और छांदोग्य में महावाक्य “अहं ब्रह्मास्मि” और “तत्त्वमसि” से स्पष्ट है कि आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं। तैत्तिरीय उपनिषद में इसे “सत्-चित्-आनंद” कहा गया, जो निर्गुण परब्रह्म का स्वरूप धारण करता है। माण्डूक्य उपनिषद तीन अवस्थाओं—जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति—में कार्य करती हुई आत्मा को चतुर्थ तुर्या के रूप में वर्णित करता है। स्वरूप के लक्षणआत्मा को अजन्मा, अमर, न जलने वाला और न सूखने वाला कहा गया, जैसा कठोपनिषद में यम द्वारा नचिकेता को समझाया। यह सर्वव्यापी, सर्वान्तर्यामी साक्षी है, जो कर्मफलों का भोक्ता जीवात्मा से भिन्न परमात्मा रूप में कार्य करती है। आत्मोपनिषद में बाह्यात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा के तीन प्रकार बताए गए हैं। साक्षात्कार का मार्गउपनिषद ज्ञानयोग, श्रवण-मनन-निदिध्यासन से आत्मसाक्षात्कार की शिक्षा देते हैं, जिसमें शरीर-मन का तादात्म्य टूटता है। यह अद्वैत सिद्धांत पर आधारित है, जहाँ आत्मा संसार के नाम-रूप से परे शुद्ध चेतना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *