शरीर मे जो चक्र बताये गया है उन स्थानों का नाम।उस शरीर के साथ पर आध्यात्मिक।ऊर्जा के केंद्र ये नाम योग शास्त्र में इन स्थानों के बताए गए है जो वास्तव चक्र न होकर आध्यात्मिक।ऊर्जा के स्थान है चक्र वास्तव में शरीर में “ऊर्जा केंद्र” ही हैं, लेकिन ये केवल स्थूल शरीर में नहीं, सूक्ष्म शरीर में स्थित होते हैं। जब आप ध्यान, साधना या समाधि में गहराई से उतरते हैं, तो ये चक्र ऊर्जावान हो उठते हैं और उनकी प्रकृति बदलने लगती है।हम जानते है कि शरीर मे यमप्रमुख ऊर्जा केंद्र (चक्र है जो हमारी अंदर उतपन्न समाधि की ऊर्जा से संबंध रखते है हमे इस बात पर गहराई से सोचना होता है कि येचक्र स्थान ऊर्जा की प्रकृति हैंऔर इनका समाधि में क्या होता हैवह।जानते है जब हम ध्यान में बैठते है तो हमारा मूलाधार तानी गुदा के पास ऊर्जा के स्पंदन का आभास होता है येमूलाधार रीढ़ की हड्डी के मूल में स्थिरता, जीवन शक्ति का पहला स्थान है जो सर्व परथम जागरण साधना से होता जागरण की शुरुआतस्वाधिष्ठान नाभि के नीचे इच्छा, कामना, रचनात्मक ऊर्जा इच्छाओं का शुद्धिकरणमणिपुर नाभि के पास आत्मबल, अग्नि, इच्छा शक्ति आंतरिक तेज जाग्रत होता हैअनाहत हृदय स्थान प्रेम, करुणा, शुद्ध चेतना अनाहद नाद (शब्द रहित ध्वनि) की अनुभूतिविशुद्धि कंठ क्षेत्र वाणी, अभिव्यक्ति, आत्मसत्य आकाश तत्व की अनुभूतिआज्ञा भ्रूमध्य ध्यान, ज्ञान, बुद्धि त्रिकालदर्शी चेतनासहस्रार सिर के ऊपर ब्रह्मज्ञान, समाधि आत्मा-परमात्मा का मिलन अब हमें जानना है कि आध्यात्मिकसमाधि में क्या होता है?हम।जानते है जब हमारे शरीर के अंदर के चक्र गुरु कृपा से ऊर्जित हो जाग्रत व चक्र ऊर्जामय हो जाते हैं और हमारे शरीर मे स्थूल से सूक्ष्म स्तर पर कार्य करते हैं।इसके बाद मूल चक्र जोहृदय चक्र (अनाहत) होता है ये गुरु के द्वारा दी गैंउर्जा से या स्वममकी पूजा पैठ धार्मिक अनुस्थ्सन से किसी भी तरह से एक्टिव होने पर “अनाहद नाद” की ध्वनि सुनाई देती है – यह बाह्य नहीं, बल्कि अंतः श्रवणध्वनि होती है।सहस्रार खुलने पर, चक्रों की क्रियाएं शांत हो जाती हैं और आत्मा शुद्ध ब्रह्म अवस्था में लीन हो जाती है।
HomeVachanशरीर मे जो चक्र बताये गया है उन स्थानों का नाम।उस शरीर के साथ पर आध्यात्मिक।ऊर्जा के केंद्र ये नाम योग शास्त्र में इन स्थानों के बताए गए है जो वास्तव चक्र न होकर आध्यात्मिक।ऊर्जा के स्थान है चक्र वास्तव में शरीर में “ऊर्जा केंद्र” ही हैं, लेकिन ये केवल स्थूल शरीर में नहीं, सूक्ष्म शरीर में स्थित होते हैं। जब आप ध्यान, साधना या समाधि में गहराई से उतरते हैं, तो ये चक्र ऊर्जावान हो उठते हैं और उनकी प्रकृति बदलने लगती है।हम जानते है कि शरीर मे यमप्रमुख ऊर्जा केंद्र (चक्र है जो हमारी अंदर उतपन्न समाधि की ऊर्जा से संबंध रखते है हमे इस बात पर गहराई से सोचना होता है कि येचक्र स्थान ऊर्जा की प्रकृति हैंऔर इनका समाधि में क्या होता हैवह।जानते है जब हम ध्यान में बैठते है तो हमारा मूलाधार तानी गुदा के पास ऊर्जा के स्पंदन का आभास होता है येमूलाधार रीढ़ की हड्डी के मूल में स्थिरता, जीवन शक्ति का पहला स्थान है जो सर्व परथम जागरण साधना से होता जागरण की शुरुआतस्वाधिष्ठान नाभि के नीचे इच्छा, कामना, रचनात्मक ऊर्जा इच्छाओं का शुद्धिकरणमणिपुर नाभि के पास आत्मबल, अग्नि, इच्छा शक्ति आंतरिक तेज जाग्रत होता हैअनाहत हृदय स्थान प्रेम, करुणा, शुद्ध चेतना अनाहद नाद (शब्द रहित ध्वनि) की अनुभूतिविशुद्धि कंठ क्षेत्र वाणी, अभिव्यक्ति, आत्मसत्य आकाश तत्व की अनुभूतिआज्ञा भ्रूमध्य ध्यान, ज्ञान, बुद्धि त्रिकालदर्शी चेतनासहस्रार सिर के ऊपर ब्रह्मज्ञान, समाधि आत्मा-परमात्मा का मिलन अब हमें जानना है कि आध्यात्मिकसमाधि में क्या होता है?हम।जानते है जब हमारे शरीर के अंदर के चक्र गुरु कृपा से ऊर्जित हो जाग्रत व चक्र ऊर्जामय हो जाते हैं और हमारे शरीर मे स्थूल से सूक्ष्म स्तर पर कार्य करते हैं।इसके बाद मूल चक्र जोहृदय चक्र (अनाहत) होता है ये गुरु के द्वारा दी गैंउर्जा से या स्वममकी पूजा पैठ धार्मिक अनुस्थ्सन से किसी भी तरह से एक्टिव होने पर “अनाहद नाद” की ध्वनि सुनाई देती है – यह बाह्य नहीं, बल्कि अंतः श्रवणध्वनि होती है।सहस्रार खुलने पर, चक्रों की क्रियाएं शांत हो जाती हैं और आत्मा शुद्ध ब्रह्म अवस्था में लीन हो जाती है।