शिव की जटाएं यह दर्शाती हैं कि उन्होंने अपनी जीवन ऊर्जा को भीतर की ओर मोड़ा है (उर्ध्वगामी ऊर्जा)।
जब गंगा उनकी जटाओं में आती है, तो वह नियंत्रित होकर धीरे-धीरे पृथ्वी पर बहती है। यह दर्शाता है कि साधना के बिना ज्ञान को न तो धारण किया जा सकता है, न ही बांटा जा सकता है।. भागीरथ: मानव प्रयास और तपस्या भागीरथ का नाम आज भी असाधारण प्रयास (भागीरथ प्रयास) के लिए लिया जाता है।
भागीरथ वह साधक है जो ज्ञान की ऊंचाइयों (गंगा) को संसार में लाना चाहता है, पर जानता है कि इसके लिए कर्म, तप और विनम्रता चाहिए।
उनका शिव से विनती करना यह दर्शाता है कि जब मानव अहंकार छोड़कर दिव्यता के आगे समर्पण करता है, तभी परम शक्ति सहयोग देती है।
–. पृथ्वी: साधारण जीवन और समाज
पृथ्वी को यह ज्ञान तभी सहन होता है जब वह शिव के माध्यम से आता है। यह दिखाता है कि:
दिव्यता को समाज में लाने के लिए एक मध्यस्थ या गुरु (शिव) की आवश्यकता होती है।
ज्ञान का विस्फोट तभी कल्याणकारी होता है जब वह मर्यादा और अनुशासन से जुड़ा
गंगा का शिव की जटाओं में समाना यह सिखाता है कि:
केवल शांत, संयमी और ध्यानस्थ मन ही दिव्य ज्ञान और चेतना को धारण कर सकता है।
आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए केवल ज्ञान या प्रेरणा पर्याप्त नहीं होती, उसके लिए तप, समर्पण, और गुरु की शरण आवश्यक होती है।
शक्ति को नियंत्रित करने की कला ही आत्म-साक्षात्कार की कुंजी है।