संत किंगद्दी जैसे उच्च कोटि के संतों का हकफसर (उत्तराधिकारी) आमतौर पर उनके परिवार वाले ही होते हैं, न कि अन्य काबिल शिष्य, क्योंकि:पारंपरिक तौर पर संत पद या उनकी आध्यात्मिक विरासत का अधिकार परिवार में ही रहना माना जाता है। यह विवेकाधिकार व वंशानुगत होता है।परिवार को साम्राज्य, संपत्ति और सामाजिक प्रभाव की जिम्मेदारी विरासत में मिलती है, जो संत के पद को सुरक्षित रखते हैं।शिष्य तो आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले होते हैं, परन्तु हकफसर यानी मालिकाना हक का अधिकार परिवार को ही दिया जाता है, ताकि व्यवस्था और धरोहर बनी रहे।यह परंपरा जातिगत, सामाजिक और कानूनी संरचनाओं से जुड़ी होती है, जहां वंशज ही आर्थिक और प्रशासनिक उत्तराधिकारी होते हैं।यह धारणा इसलिए भी प्रचलित है क्योंकि परिवार के सदस्यों को ही संत की संपत्ति और पद संबंधी अधिकारों को संरक्षित रखने की जिम्मेदारी दी जाती है, जबकि शिष्य केवल आध्यात्मिक अनुयायी होते हैं जिनका पदाधिकारी होने का कानूनी हक नहीं माना जाता। इसलिए, काबिल शिष्य भी यदि परिवार के सदस्य न हों तो वे हकफसर नहीं माने जाते।इस प्रकार, एक उच्च कोटि के संत का हकफसर उसका परिवार होता है, क्योंकि संपत्ति और पद का अधिकार पारिवारिक वंश में रहता है, न कि केवल आध्यात्मिक योग्यता या शिष्यत्व से