“स्वम् को जानना” अर्थात अपनी असली पहचान को समझना, भारतीय दर्शन व योग मार्ग की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है। यदि जीवन मुक्त होना है, तो इस मार्ग की गहराई और श्रेयस् साधन अपनाने चाहिए।स्वं को जानने के उपायआत्म-जाँच (Self-inquiry): सबसे सीधा प्रश्न है “मैं कौन हूँ?” जिसे निरंतर मन में पूछकर विचार, स्मृति, भूमिका, पसंद आदि के पार जाना चाहिए। यही रामण महर्षि, उपनिषद व वेदांत का मार्ग है।ध्यान व मेडिटेशन: रोजाना ध्यान अथवा मौन साधना के द्वारा मन के शोर से दूर रहकर व नाद आवाज जो उतपन्न होती है उसे अनाहद कहा है को सुन्ना ओर उस पर मनन करना और उसमे में लगे रहना, स्व-अस्तित्व की शुद्धता का अनुभव करने का रास्ता है।स्वाध्याय: वेद, उपनिषद, गीता, या अनुभवी गुरु के संवादों का चिंतन आपकी आत्म-जागृति को सरल बनाता है।संयम: इन्द्रियों, मन के आकर्षणों, व इच्छाओं को नियंत्रित करने से आत्म-शक्ति पनपती है और स्वयं के मूल स्वरुप को जानने में सहायता मिलती है।जीवन-मुक्ति के मार्गज्ञानयोग: बुद्धि और विवेक के द्वारा “मैं कौन हूँ?” का निराकरण और अद्वैत ब्रह्म की अनुभूति।भक्तियोग: प्रेम और समर्पण की अवस्था जिसमें ईश्वर में एकरूपता का प्रबल अनुभव होता है।कर्मयोग: निष्काम कर्म द्वारा आत्मा की स्वच्छता और स्वतंत्रता।ध्यान व राजयोग: निरंतर साक्षी भाव, समता और मन-इन्द्रियों का नियंत्रण।जीवन-मुक्ति के लक्षणवैराग्य और समता: वस्तुओं व स्थितियों की समानता; कोई द्वेष या मोह नहीं।आनंद में स्थिरता: बाहर की घटनाओं का प्रभाव नहीं पड़ता, चित्त सदा शांत रहता है।वर्तमान में रहना: अतीत या भविष्य की चिंता से मुक्त, साक्षी भाव में जीन।ब्रह्म के साथ एकरूपता: स्वयं को परमात्मा का भाग जानना, सभी बंधनों से परे होना।व्यावहारिक साधनारोज अभ्यास करें कि “मैं शरीर, मन, भावना नहीं हूं, इनमें जो अनुभव हो रहा है उसका साक्षी ही मैं हूं”ध्यान, मौन, श्वास की जागरूकता, और कर्म में सजगता लाए।अपने कार्य, संबंध, इच्छाओं का साक्षी भाव से निरीक्षण करें, प्रतिक्रिया के बजाय जागरूकता रखें।आध्यात्मिक ग्रंथों और गुरु के मार्गदर्शन में स्व-अन्वेषण बढ़ाएं”स्वम् को जानना” ही जीवन मुक्ति का द्वार है—जहां बाहरी पहचानें मिट जाती हैं, और सच्चे ‘मैं’ (शुद्ध आत्मा) का उजास अनुभव होता है