पूर्ण वैराग्य तब संभव है जब इंसान संसार के सुख-दुःख, सफलता-असफलता, और रिश्तों के बंधनों से ऊपर उठकर समभाव में स्थित हो जाए। इसके लिए केवल बाहरी त्याग पर्याप्त नहीं, बल्कि आंतरिक रूप से निर्लिप्त होना आवश्यक है, यानी किसी भी वस्तु, व्यक्ति, या परिस्थिति से मानसिक रूप से जुड़ाव न रखना।
इसके साथ ही, मोह-माया (भौतिक सुख-संपत्ति और भावनात्मक संबंधों में आसक्ति) से मुक्त होना जरूरी है। ऐसा तभी हो सकता है जब मनुष्य आत्मज्ञान प्राप्त कर ले और उसे इस संसार की असारता का बोध हो जाए।
पूर्ण वैराग्य के लिए ईश्वर में लय होना (अर्थात् ध्यान, भक्ति, या ज्ञान के मार्ग से ईश्वर की अनुभूति) एक महत्वपूर्ण मार्ग है, लेकिन इसके अलावा निम्नलिखित बातें भी सहायक होती हैं:
- विवेक – सही और गलत, नश्वर और शाश्वत में भेद करने की क्षमता।
- वैराग्य – संसारिक भोगों और इच्छाओं से मुक्ति।
- शम-दम – मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण।
- तितिक्षा – सहनशीलता और धैर्य।
- श्रद्धा और समर्पण – ईश्वर या आत्मतत्व में अडिग विश्वास और समर्पण।
- साधना और आत्मचिंतन – नियमित ध्यान, योग, और स्वाध्याय।
संक्षेप में, पूर्ण वैराग्य का मतलब है अभिनिवेश (आसक्ति) और द्वेष (विरोध) दोनों से ऊपर उठकर आत्मिक शांति में स्थिर हो जाना।पूर्ण वैराग्य तब संभव है जब इंसान संसार के सुख-दुःख, सफलता-असफलता, और रिश्तों के बंधनों से ऊपर उठकर समभाव में स्थित हो जाए। इसके लिए केवल बाहरी त्याग पर्याप्त नहीं, बल्कि आंतरिक रूप से निर्लिप्त होना आवश्यक है, यानी किसी भी वस्तु, व्यक्ति, या परिस्थिति से मानसिक रूप से जुड़ाव न रखना।
इसके साथ ही, मोह-माया (भौतिक सुख-संपत्ति और भावनात्मक संबंधों में आसक्ति) से मुक्त होना जरूरी है। ऐसा तभी हो सकता है जब मनुष्य आत्मज्ञान प्राप्त कर ले और उसे इस संसार की असारता का बोध हो जाए।
पूर्ण वैराग्य के लिए ईश्वर में लय होना (अर्थात् ध्यान, भक्ति, या ज्ञान के मार्ग से ईश्वर की अनुभूति) एक महत्वपूर्ण मार्ग है, लेकिन इसके अलावा निम्नलिखित बातें भी सहायक होती हैं:
1. विवेक – सही और गलत, नश्वर और शाश्वत में भेद करने की क्षमता।
2. वैराग्य – संसारिक भोगों और इच्छाओं से मुक्ति।
3. शम-दम – मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण।
4. तितिक्षा – सहनशीलता और धैर्य।
5. श्रद्धा और समर्पण – ईश्वर या आत्मतत्व में अडिग विश्वास और समर्पण।
6. साधना और आत्मचिंतन – नियमित ध्यान, योग, और स्वाध्याय।
संक्षेप में, पूर्ण वैराग्य का मतलब है अभिनिवेश (आसक्ति) और द्वेष (विरोध) दोनों से ऊपर उठकर आत्मिक शांति में स्थिर हो जाना।