कई आध्यात्मिक परंपराओं में यह माना जाता है कि पूर्ण गुरु अपने शिष्य का मार्गदर्शन न केवल जीवन में बल्कि मृत्यु के बाद भी करते हैं। यह संबंध केवल शारीरिक उपस्थिति तक सीमित नहीं होता, बल्कि गुरु की चेतना शिष्य के साथ बनी रहती है, जब तक कि वह भी पूर्णता को प्राप्त न कर ले।
कुछ मतों में यह भी कहा जाता है कि यदि शिष्य को अपने आत्म-उद्धार के लिए कुछ और साधना या तप की आवश्यकता होती है, तो गुरु उसे सूक्ष्म स्तर पर भी सहायता देते हैं। गुरु की कृपा से शिष्य की बाधाएँ दूर होती हैं, और यदि वह उनके बताए मार्ग पर चलता है, तो उसे भी मुक्ति की ओर बढ़ने का अवसर मिलता है।कई आध्यात्मिक परंपराओं में यह माना जाता है कि पूर्ण गुरु अपने शिष्य का मार्गदर्शन न केवल जीवन में बल्कि मृत्यु के बाद भी करते हैं। यह संबंध केवल शारीरिक उपस्थिति तक सीमित नहीं होता, बल्कि गुरु की चेतना शिष्य के साथ बनी रहती है, जब तक कि वह भी पूर्णता को प्राप्त न कर ले।
कुछ मतों में यह भी कहा जाता है कि यदि शिष्य को अपने आत्म-उद्धार के लिए कुछ और साधना या तप की आवश्यकता होती है, तो गुरु उसे सूक्ष्म स्तर पर भी सहायता देते हैं। गुरु की कृपा से शिष्य की बाधाएँ दूर होती हैं, और यदि वह उनके बताए मार्ग पर चलता है, तो उसे भी मुक्ति की ओर बढ़ने का अवसर मिलता है।