पिताजी साहब जिस समय किसी भी शिष्य को शिष्य बन उसके अंदर अपनी आध्यत्मिक ऊर्जा रोपित करते थे तो उसके बाद शिष्य जैसे जैसे प्रेक्टिस करता तो कुछ समय आड़ उसके शरीर मे कुछ हलचल होती हुई लगती थी लगता था उसका शरीर मे कम्पन हो रही है और कोई ऊर्जा उसके रग रग से निकल।कर ब्रह्मण्ड में जा रही है इसअनाहद ध्वनि को (शाश्वत ध्वनि) योग और ध्यान की गहन अवस्थाओं में अनुभव की जाती है, विशेष रूप से जब साधक समाधि की स्थिति में पहुँचता है।
जब यह ध्वनि अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर तरंग रूप में अंतरिक्ष (आकाश तत्व) में विलीन होती है,
- प्रथम स्तर – व्यक्तिगत ऊर्जा क्षेत्र (Aura और सूक्ष्म शरीर)
जब साधक गहरी ध्यान अवस्था में प्रवेश करता है, तो अनाहद नाद शरीर के सूक्ष्म तंत्रों में प्रकट होता है।
यह ऊर्जा क्षेत्र में स्पंदन उत्पन्न करता है और व्यक्ति की चेतना का विस्तार करता है।
- द्वितीय स्तर – अंतरिक्षीय कंपन (Astral Plane)
समाधि में स्थिर होते ही यह ध्वनि बाहरी आकाश में फैलने लगती है।
यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा तरंगों के साथ समायोजित होकर सूक्ष्म लोकों में प्रवेश करती है।
इस स्तर पर साधक को दिव्य ध्वनियाँ (शंख, घंटा, बांसुरी आदि) सुनाई दे सकती हैं।
- तृतीय स्तर – ब्रह्मांडीय तरंग (Cosmic Vibrations)
जब ध्यान और समाधि गहरी होती जाती है, तो यह ध्वनि ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ एकरूप हो जाती है।
इसे शिव के डमरू की ध्वनि या ॐकार नाद के रूप में अनुभव किया जाता है।
यह चेतना के महासागर में विलीन होकर साधक को अद्वैत अनुभव कराती है।
- चतुर्थ स्तर – परब्रह्म में विलय (Ultimate Merging with the Cosmos)
जब समाधि पूर्णतः निर्बीज हो जाती है, तो अनाहद ध्वनि भी ब्रह्मांड में व्याप्त पराशक्ति में विलीन हो जाती है।
यह स्थिति अद्वैत, निर्विकल्प समाधि, और परब्रह्म से एकत्व की स्थिति होती है।
संक्षेप में, अनाहद ध्वनि समाधि की गहराइयों में सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होते हुए ब्रह्मांडीय ऊर्जा में विलीन हो जाती है, जहाँ वह परमतत्व के साथ एकाकार हो जाती है। यह अवस्था शब्दातीत, अव्यक्त और शुद्ध चैतन्य की स्थिति होती है।