समाधि वास्तव में एक ऐसी अवस्था है जिसे शब्दों में पूरी तरह व्यक्त करना कठिन होता है, क्योंकि यह अनुभव का विषय है। लेकिन आपने जो कहा — “समाधि किसी संत की आंतरिक भावना का रूप है” — वह बहुत हद तक सही है।

आइए इसे थोड़ा विस्तार से समझते हैं:

समाधि क्या है?

समाधि योग और ध्यान की अंतिम अवस्था मानी जाती है, जहाँ साधक का मन, बुद्धि और अहं (ego) पूर्ण रूप से शांत होकर आत्मा या परम सत्य में लीन हो जाता है।

यह केवल मानसिक शांति नहीं, बल्कि पूर्ण एकत्व की स्थिति है — “मैं” और “तू” का भेद मिट जाता है।

संतों की दृष्टि में समाधि:

किसी संत के लिए समाधि केवल ध्यान की अवस्था नहीं होती, बल्कि उनकी चेतना की स्थायी स्थिति बन जाती है।

यह आंतरिक भावना (inner experience) होती है जो बाहर से नहीं दिखती, लेकिन उनके व्यवहार, वाणी और करुणा में झलकती है।

यह भावना प्रेम, शांति, करुणा, और ज्ञान से भरी होती है — जो स्वार्थ से परे होती है।

सरल शब्दों में कहें तो:

समाधि संत के अंतर्मन की वह अनुभूति है जहाँ वह परमात्मा के साथ एक हो जाता है, और वही उसकी चेतना का आधार बन जाती है।

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