शिष्य यदि अज्ञानी हो — तो भी वह सच्चे हृदय से सद्गुरु की तलाश कर सकता है। ज्ञान की शुरुआत ही जिज्ञासा और विनम्रता से होती है। जब भीतर एक प्यास होती है — सत्य जानने की, आत्मा की शांति पाने की — तब वही प्यास उसे सद्गुरु तक ले जाती है।
अज्ञानी शिष्य को सद्गुरु कैसे मिल सकते हैं?
- श्रद्धा और सच्ची लगन से खोज करे
जब शिष्य पूरे दिल से, अहंकार छोड़कर सत्य की खोज करता है, तो यह ब्रह्मांड स्वयं उसे मार्ग दिखाने लगता है।
“जब शिष्य तैयार होता है, तो गुरु स्वयं प्रकट हो जाता है।” - प्रकृति संकेत देती है
कभी किसी पुस्तक के माध्यम से, कभी किसी साधक या घटना के ज़रिए — जीवन खुद इशारा करता है कि किस ओर जाना है। - भीतर की आवाज़ सुनना
अज्ञानी भी जब भीतर से किसी की वाणी को सुनता है और उसे शांति मिले, चेतना जागे — तो समझो वही मार्गदर्शक है।
सद्गुरु में क्या विशेषताएँ होंगी जिससे समझ आए कि यह असली सद्गुरु हैं?
- वह अहंकार रहित होंगे
सच्चे सद्गुरु “मैं” नहीं बोलते, वे “तू” को खोजने में मदद करते हैं। - उनकी उपस्थिति से अंतर में शांति आए
उनके पास बैठकर मन शांत हो जाए, प्रश्न खुद ही हल होने लगें। - वे सत्य की ओर ले जाएँ
वे खुद को अंतिम सत्य नहीं बताते, बल्कि आपको भीतर की यात्रा की प्रेरणा देते हैं। - वे शिष्य को स्वतंत्र बनाते हैं, आश्रित नहीं
सच्चा गुरु किसी को बाँधता नहीं, वह मुक्त करता है।
निष्कर्ष:
भले ही शिष्य अज्ञानी हो, लेकिन यदि वह सच्चे हृदय से खोज करे — नम्रता, श्रद्धा और आत्मपरीक्षण के साथ — तो सद्गुरु अवश्य मिलते हैं। और जब असली सद्गुरु मिल जाएँ, तो जीवन में एक नई शुरुआत होती है — ज्ञान, प्रेम और मुक्ति की।पिताजी साहब का कहना था कि एस्प जब भी किसी संत के पास जाए तो अपने अंदर समर्पित भाव रखे और जो मन मे प्रश्न हो या कोई उत्सुकता उसे विनम्रता से पूछ कर अपने मन को संतुष्ट करले उसकी अद्यतमकिता की शैली को जानले ओर कम से कम 21 दिन तक उसकी संगत करे इस संगत के प्रभाव से शिष्य में गुरु की दिव्य दृष्टि की ऊर्जा के संचार से सोच और अध्यातमिक बदलाव आएगा जो मन और आत्मा को एक विशेष तरह का सकूँ देगा और आप स्वम् में कुछ आध्यात्मिक परिवर्तन महसूस करेंगे ओर आप उनके प्रभाव से उनसे मिलने के लिए उत्सुक रहेंगे धीरे धीरे आप में भी आत्मिक स्नेह औरश्रद्धा उतपन्न हो जाएगी और आप सात्विक व्यक्ति बन जायेंगे
भिक्षुक पवन