गंगा, यमुना और सरस्वती का प्रतीकात्मक अर्थ:

गंगा, यमुना और सरस्वती केवल भौतिक नदियाँ नहीं हैं, ये मानव शरीर और योगिक चेतना में बहने वाली तीन प्रमुख नाड़ियों का प्रतीक हैं:

  1. इड़ा नाड़ी (गंगा):

बाएँ नासाछिद्र (Left Nostril) से जुड़ी है।

चंद्र स्वर, शीतल, स्त्रैण ऊर्जा।

मन और भावना से संबंधित।

मस्तिष्क के दाहिने भाग को प्रभावित करती है।

  1. पिंगला नाड़ी (यमुना):

दाएँ नासाछिद्र (Right Nostril) से जुड़ी है।

सूर्य स्वर, उष्ण, पुंलिंगी ऊर्जा।

कर्म और शरीर की क्रिया से संबंधित।

मस्तिष्क के बाएँ भाग को प्रभावित करती है।

  1. सुषुम्ना नाड़ी (सरस्वती):

मेरुदंड (Spinal Cord) के मध्य में स्थित।

तटस्थ, दिव्य ऊर्जा का मार्ग।

जब इड़ा और पिंगला संतुलित होती हैं, तब सुषुम्ना सक्रिय होती है।

यही मार्ग कुंडलिनी शक्ति के जागरण का है।


शिव की जटा से गंगा का बहना – प्रतीकात्मक रहस्य:

शिव का जटा-जूटधारी रूप उच्चतम योग अवस्था का प्रतीक है – जहाँ सभी विचार, भावनाएँ और इच्छाएँ नियंत्रित हैं।

जब गंगा पृथ्वी पर आती है (जो दिव्य चेतना का प्रवाह है), तो वह इतनी तीव्र होती है कि वह सबकुछ बहा ले जाती। तब शिव अपनी जटाओं में उसे रोकते हैं – अर्थात् योगी अपनी चेतना को संयमित करके दिव्यता को सहन करने योग्य बनाता है।

यह दर्शाता है कि दिव्य ऊर्जा (गंगा) तभी शरीर में नियंत्रित होकर प्रवाहित होती है, जब चेतना शिववत् स्थिर, शांत और संयमी हो।


तीनों नाड़ियों का संगम – त्रिवेणी संगम:

प्रयागराज का त्रिवेणी संगम केवल भौतिक नहीं, यह आंतरिक संगम का भी प्रतीक है।

जब इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना का अंतर्मन में संगम होता है, तब साधक को आध्यात्मिक जागरण और आत्म-साक्षात्कार का अनुभव होता है।

यही है अमृत प्रवाह, जो शिव की जटा से निकलता है – कुंडलिनी जागरण के बाद आत्मा को अमृतमयी अनुभूति होती है।

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