के विकारों पर नियंत्रण और मन को स्थिर करने के उपायों पर सोच-विचार करना आत्मिक उन्नति की दिशा में पहला कदम है। चलिए इसे सरल भाषा में समझते हैं:
- मन के विकार क्या हैं?
काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष — ये सभी मन के विकार हैं। ये ही इंसान को अशांत करते हैं और सही निर्णय से दूर ले जाते हैं।
- मन पर नियंत्रण कैसे पाया जाए?
(i) जप (मंत्र-जप)
किसी एक पवित्र मंत्र का नियमित जप (जैसे “ॐ नमः शिवाय”, “राम”, “ॐ”) मन को एकाग्र करता है।
जप करने से मन का प्रवाह धीरे-धीरे भीतर की ओर आता है और विकार शिथिल होते हैं।
जप करते समय भाव होना चाहिए — केवल यंत्रवत न हो।
(ii) ध्यान (मेडिटेशन)
मन को एक जगह टिकाने की सर्वोत्तम विधि है।
रोज 10-20 मिनट भी ध्यान किया जाए, तो मन के विचार शांत होने लगते हैं।
शुरुआत में श्वास पर ध्यान केंद्रित करें या मंत्र के साथ ध्यान करें।
(iii) स्वाध्याय (शास्त्र/धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन)
गीता, उपनिषद, रामायण, जीवनियों का अध्ययन मन को ज्ञान की ओर मोड़ता है।
ज्ञान से विवेक जागृत होता है और विकार स्वतः कम होने लगते हैं।
रोज थोड़ा समय इन ग्रंथों को पढ़ने से सोच की दिशा बदलती है।
(iv) गुरु भक्ति और सत्संग
सत्संग (सत + संग = सच्चे विचारों की संगति) बहुत प्रभावशाली उपाय है।
संतों की संगति से और गुरु की सेवा-भक्ति से मन का अहंकार पिघलता है।
गुरु कृपा से आत्मज्ञान सहज हो सकता है।
(v) सेवा और त्याग
जब हम दूसरों की सेवा में मन लगाते हैं, तो अपना “स्व” और उसके विकार कमजोर होते हैं।
नि:स्वार्थ सेवा विकारों को जलाती है और अंत:करण को शुद्ध करती है।
- व्यवहारिक उपाय भी ज़रूरी हैं:
संयमित आहार, नींद का ध्यान, अशांत लोगों और वातावरण से दूरी,
नियमित दिनचर्या, विकारी विषयों से दूरी (जैसे नकारात्मक सोशल मीडिया आदि)