हमारे हिन्दू शास्त्रो में ब्रह्मा विष्णु और महेश को अलग अलग गुणों।के असधर पर व्यक्त किया गया है और कहा गया कि गंगा शिव की जटा से निकली है और गंगा का प्रवाह और सहस्त्र चक्र शिव के सर पर जटा व सर में स्तिथ सहस्त्र चक्र से प्रवाह हुवा है मेरी सोच कर अनुसार सर पर केश व सहस्त्र चक्र ओर आज्ञा कलर का आध्यात्मिक बहुत गहरा रिश्ता है आज्ञा चक्र व सहस्रार चक्र— दोनों में आध्यात्मिक दृष्टि से गहरा संबंध देखा जा सकता है।
या इसे हम इस तरह से आध्यात्मिक द्रष्टिकोण को अपनाते हुवे सोच सकते है
शिव को योग के आदियोगी यानी प्रथम योगी माना जाता है। उनकी जटाएं हमारे मस्तिष्क पत पर ऊर्ध्वगामी ऊर्जा प्रवाह (उपर उठती हुई चेतना) का प्रतीक हैं जो एक ऊर्जा के रूप में उनके केश में समाई हुई थी जिसे उन्होंने चेतना के रूप में भौतिक दुनिया मे ऊर्जा को प्रेदर्शित किया और गंगा रूपी ऊर्जा जैसी दिव्य चेतना या ब्रह्मज्ञान का प्रवाह है जो स्वर्ग (ऊपर से) आता है उसे शिव की जटाओं से नियंत्रित होकर धरती पर बहता हुवा दर्शाया गया — यानी, असीम ब्रह्म ऊर्जा को साधना द्वारा नियंत्रित कर उसे आध्यात्मिक संसार मे ऊर्जा के रूप में रूप बताया गया जिससे लोग आज्ञा चक्र व सहस्त्र चक्र की ऊर्जा का महत्व समझ सके क्योकि हम जानते है कि सहस्त्र चक्र (या सहस्रार चक्र) सिर के ऊपर का चक्र है, जो पूरे मस्तिष्क में एक जगह पर स्तिथ है और यह नियंत्रण ब्रह्मांड को करता है यानी सहस्त्र चक्र के जाग्रत होंने पर समस्त ब्रह्मांड या आंतरिक्ष का ज्ञान साधक को हो जाता है । यह चक्र पूरी तरह जागृत होने पर व्यक्ति ब्रह्मा-ज्ञान (एकत्व) को अनुभव करता है।हम।जानते। है कि सहस्रार चक्र से प्रेम, करुणा, ब्रह्मज्ञान की गंगा प्रवाहित होती है — ठीक वैसे ही जैसे शिव की जटाओं से गंगा बहती हुई दर्शाई गई है जो अलौकिक है यानी
शिव की जटा = हमारी आध्यात्मिक साधना चेतना और ऊर्जा और साधना पर पूर्ण नियंत्रण।
गंगा = दिव्य चेतना/ऊर्जा का प्रवाह।सहस्रार चक्र = चेतना का द्वार, जहाँ से वह ऊर्जा भीतर प्रवाहित होती है।
आध्यात्मिक संकेत:
जो साधक अपनी ऊर्जा को स्थिर और नियंत्रित कर लेता है (जैसे शिव ने गंगा को जटाओं में रोक कर धीरे-धीरे धरती पर बहने दिया), वही साधक सहस्र चक्र के द्वार खोलकर ब्रह्मज्ञान को दिखाया पानी रूपी यूर्जा के रूप में ये मेरी सोच है जरूरी नही की आप सहमत हो गलत लगे तो डिलीट करदे ओर मुझे क्षमा करदे