हनुमान जी द्वारा अपनी पूंछ से लंका जलाने की घटना रामायण में एक महत्वपूर्ण और प्रतीकात्मक प्रसंग है, जिसका आध्यात्मिक रहस्य गहरा है। इसे केवल भौतिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक दृष्टि से समझना जरूरी है।घटना का संक्षेप:सुंदरकांड में, हनुमान जी सीता माता की खोज में लंका पहुंचते हैं। रावण के सैनिक उनकी पूंछ में आग लगाकर उनका अपमान करना चाहते हैं। लेकिन हनुमान जी, जो भगवान राम के परम भक्त और शिव के अवतार हैं, अपनी शक्ति और बुद्धि से इस स्थिति को उलट देते हैं। वे अपनी पूंछ की आग को बुझाने के बजाय उसे और बढ़ाते हैं और उससे पूरी लंका को जला देते हैं, सिवाय अशोक वाटिका के, जहां सीता माता थीं।आध्यात्मिक रहस्य:हनुमान जी की शक्ति का प्रतीक:हनुमान जी कोई साधारण वानर नहीं थे। वे वायु पुत्र, शिवांश और अत्यंत शक्तिशाली योद्धा थे। उनकी पूंछ उनकी आध्यात्मिक और शारीरिक शक्ति का प्रतीक है। पूंछ जलाना रावण की मूर्खता को दर्शाता है, जो यह समझ नहीं पाया कि हनुमान जी की शक्ति को दबाना असंभव है।आध्यात्मिक रूप से, यह दर्शाता है कि भक्त की शक्ति (हनुमान) और भगवान की कृपा (राम) के सामने अहंकार (रावण) नष्ट हो जाता है।आग का प्रतीक:हनुमान जी की पूंछ में लगी आग भक्त के भीतर की ज्वाला (दिव्य चेतना, भक्ति, और सत्य) का प्रतीक है। यह आग अज्ञानता, अधर्म और अहंकार को जलाकर भस्म कर देती है। लंका का जलना अधर्म के विनाश का प्रतीक है।यह भी दर्शाता है कि सच्चा भक्त अपने संकट को ही हथियार बना सकता है। रावण ने हनुमान को नष्ट करने की कोशिश की, लेकिन हनुमान ने उसी आग को लंका के विनाश का माध्यम बनाया।हनुमान जी का मानव-वानर रूप:हनुमान जी का वानर रूप उनकी विनम्रता और भक्ति का प्रतीक है। वानर रूप होने के बावजूद उनकी शक्ति असीम थी, जो यह सिखाता है कि सच्ची शक्ति बाहरी रूप में नहीं, बल्कि आंतरिक भक्ति और विश्वास में होती है।आध्यात्मिक दृष्टि से, वानर मन की चंचलता का प्रतीक है। हनुमान जी इस चंचल मन को नियंत्रित कर भगवान राम की सेवा में लगाते हैं, जो भक्तों को मन को संयमित करने की प्रेरणा देता है।लंका का जलना और अधर्म का अंत:लंका रावण के अहंकार, अधर्म और पाप का प्रतीक थी। हनुमान जी द्वारा लंका जलाना यह दर्शाता है कि भक्ति और सत्य की शक्ति के सामने कोई भी अधर्म टिक नहीं सकता।यह घटना भक्तों को यह भी सिखाती है कि संकट में भी विश्वास बनाए रखने से विजय निश्चित है। हनुमान जी ने रावण की मूर्खता को उसके ही विनाश का कारण बनाया।हनुमान जी की भक्ति और बुद्धि:हनुमान जी ने अपनी पूंछ की आग को नियंत्रित कर केवल उन स्थानों को जलाया, जो अधर्म से भरे थे, और सीता माता की अशोक वाटिका को सुरक्षित रखा। यह उनकी बुद्धिमत्ता, भक्ति और संयम का प्रतीक है।आध्यात्मिक रूप से, यह दर्शाता है कि सच्चा भक्त अपनी शक्ति का उपयोग केवल धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए करता है।

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