जीवन और मरण से मुक्ति, जिसे अक्सर मोक्ष या निर्वाण कहा जाता है, भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता में एक गहन अवधारणा है। यह चक्रवर्ती जन्म-मृत्यु के चक्र (संसार) से मुक्ति और आत्मा का परम सत्य या ईश्वर के साथ एकीकरण का प्रतीक है। विभिन्न दार्शनिक और धार्मिक परंपराएँ इसे अलग-अलग तरीकों से समझाती हैं:हिंदू दर्शन:अद्वैत वेदांत: मोक्ष आत्मा का अपने वास्तविक स्वरूप (ब्रह्म) के साथ एक होने की अवस्था है। यह माया (अज्ञान) से मुक्ति और आत्म-साक्षात्कार द्वारा प्राप्त होता है।कर्म और भक्ति: निष्काम कर्म (निस्वार्थ कार्य), भक्ति (ईश्वर के प्रति समर्पण), और ज्ञान (आत्म-जागरूकता) मोक्ष के मार्ग हैं।उपनिषदों में कहा गया है: “तत्वमसि” (तू वही है), जो आत्मा और परमात्मा की एकता को दर्शाता है।बौद्ध धर्म:निर्वाण संसार के दुखों (दुख, लालसा, अज्ञान) से पूर्ण मुक्ति है। यह अष्टांगिक मार्ग (सही दृष्टि, संकल्प, वाणी, कर्म, आदि) के माध्यम से प्राप्त होता है।बुद्ध ने इसे एक ऐसी अवस्था के रूप में वर्णित किया, जहाँ कोई भी लालसा या बंधन नहीं रहता।जैन धर्म:मोक्ष आत्मा का कर्मों के बंधन से मुक्त होकर सिद्ध अवस्था में पहुँचना है। यह तप, संयम, और आत्म-शुद्धि से संभव है।जैन दर्शन में आत्मा स्वाभाविक रूप से शुद्ध है, और कर्मों का क्षय ही मुक्ति का मार्ग है।सिख धर्म:मुक्ति ईश्वर के साथ पूर्ण सामंजस्य और अहंकार से मुक्ति है। यह गुरु की कृपा, नाम सिमरन (ईश्वर का स्मरण), और सत्कर्मों से प्राप्त होती है।प्राप्ति के मार्ग:आत्म-ज्ञान: अपनी वास्तविक प्रकृति को समझना।साधना: ध्यान, योग, और तप के माध्यम से मन को नियंत्रित करना।नैतिक जीवन: सत्य, अहिंसा, और सेवा पर आधारित जीवन।गुरु कृपा: आध्यात्मिक मार्गदर्शन।अद्वैत वेदांत भारतीय दर्शन की एक प्रमुख शाखा है, जिसका प्रतिपादन मुख्य रूप से आदि शंकराचार्य (8वीं शताब्दी) ने किया। यह उपनिषदों, भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र पर आधारित है और “अद्वैत” (अ-द्वैत, अर्थात् “दो का अभाव”) के सिद्धांत को प्रस्तुत करता है। यहाँ इसका विस्तार से विवरण दिया गया है:अद्वैत वेदांत का मूल सिद्धांतअद्वैत वेदांत का केंद्रीय विचार यह है कि ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है, और संसार (जगत) माया (अवास्तविक या भ्रामक) के कारण प्रतीत होता है। आत्मा (जीव) और ब्रह्म (परम सत्य) में कोई भेद नहीं है। इस सिद्धांत को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:ब्रह्म सत्यं, जगत् मिथ्या:ब्रह्म: यह परम वास्तविकता है, जो सत्-चित्-आनंद (सत्य, चेतना, और आनंद) स्वरूप है। ब्रह्म निर्गुण (गुणों से रहित), निराकार, और सर्वव्यापी है।जगत् मिथ्या: संसार (विश्व) वास्तविक नहीं है, बल्कि माया के कारण एक भ्रम है। यह रस्सी में साँप का भ्रम जैसा है—जो दिखता है, वह वास्तव में नहीं है।जीवो ब्रह्मैव नापरः:जीव (आत्मा) और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं है। अज्ञान (अविद्या) के कारण जीव स्वयं को देह, मन, और इंद्रियों से अलग मानता है, लेकिन वास्तव में वह ब्रह्म ही है।उपनिषदों का महावाक्य “अहं ब्रह्मास्मि” (मैं ब्रह्म हूँ) और “तत्त्वमसि” (तू वही है) इस एकता को दर्शाते हैं।माया और अविद्या:माया: यह ब्रह्म की शक्ति है, जो संसार को प्रतीत कराती है। माया न सत्य है, न असत्य, बल्कि अनिर्वचनीय (वर्णन से परे) है।अविद्या: व्यक्तिगत अज्ञान, जो जीव को अपनी वास्तविक प्रकृति (ब्रह्म) से भ्रमित रखता है। यह अहंकार और संसार के प्रति आसक्ति का कारण बनता है।मोक्ष:मोक्ष अविद्या के नाश और आत्म-साक्षात्कार (ब्रह्म के साथ एकता का बोध) से प्राप्त होता है। यह जन्म-मृत्यु के चक्र (संसार) से मुक्ति है।मोक्ष जीवित अवस्था में (जीवन्मुक्ति) या मृत्यु के बाद (विदेहमुक्ति) प्राप्त हो सकता है।अद्वैत वेदांत के प्रमुख तत्वविवेक: सत्य (ब्रह्म) और असत्य (जगत) के बीच भेद करने की क्षमता।वैराग्य: संसार की नश्वर वस्तुओं और इच्छाओं से विरक्ति।शमादि षट्क संपत्ति: मन की शांति (शम), इंद्रियों पर नियंत्रण (दम), बाहरी विषयों से मन का हटना (उपरति), सहनशीलता (तितिक्षा), विश्वास (श्रद्धा), और एकाग्रता (समाधान)।मुमुक्षुत्व: मोक्ष की तीव्र इच्छा।मोक्ष का मार्गअद्वैत वेदांत में मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान मार्ग पर बल दिया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित साधनाएं महत्वपूर्ण हैं:श्रवण: वेदांत के ग्रंथों और गुरु के उपदेशों को सुनना और समझना।मनन: सुने हुए ज्ञान पर चिंतन करना और उसे आत्मसात करना।निदिध्यासन: गहन ध्यान और आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया।गुरु की कृपा: एक योग्य गुरु का मार्गदर्शन, जो अविद्या को दूर करने में सहायता करता है।शंकराचार्य का योगदानआदि शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत को व्यवस्थित रूप दिया और इसे भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रचारित किया।उनके प्रमुख ग्रंथ:उपनिषदों पर भाष्य: जैसे, बृहदारण्यक, छांदोग्य, और मांडूक्य उपनिषद।ब्रह्मसूत्र भाष्य: वेदांत दर्शन का आधार।भगवद्गीता भाष्य: कर्म, भक्ति, और ज्ञान का समन्वय।स्वरचित ग्रंथ: विवेकचूड़ामणि, आत्मबोध, और उपदेशसाहस्री।उन्होंने चार मठों (ज्योतिर्मठ, द्वारका, पुरी, और श्रृंगेरी) की स्थापना की, जो आज भी वेदांत के प्रचार के केंद्र हैं।अद्वैत और अन्य दर्शनों से तुलनाद्वैत वेदांत (मध्वाचार्य): जीव और ईश्वर को पृथक मानता है, जबकि अद्वैत में दोनों एक हैं।विशिष्टाद्वैत (रामानुज): जीव और ब्रह्म का संबंध अंश-अंशी (भाग और पूर्ण) का है।बौद्ध शून्यवाद: अद्वैत में ब्रह्म सकारात्मक सत्य है, जबकि शून्यवाद में सब शून्य है।आधुनिक संदर्भ में अद्वैतअद्वैत वेदांत का प्रभाव आधुनिक विचारकों जैसे स्वामी विवेकानंद, रमण महर्षि, और निसर्गदत्त महाराज पर देखा जा सकता है।यह आत्म-जागरूकता, ध्यान, और mindfulness जैसी अवधारणाओं के साथ वैश्विक आध्यात्मिकता में लोकप्रिय है।रमण महर्षि का “आत्म-विचार” (Who am I?) अद्वैत की सरल और प्रभावी साधना है।प्रायोगिक पक्षध्यान और योग: अद्वैत में ध्यान के माध्यम से मन को शांत कर आत्मा का साक्षात्कार किया जाता है।जीवनशैली: सरल, नैतिक, और निस्वार्थ जीवन जीना, जो अहंकार को कम करता है।आधुनिक चुनौतियाँ: भौतिकवादी दुनिया में वैराग्य और आत्म-चिंतन को अपनाना कठिन हो सकता है, लेकिन अद्वैत का ज्ञान तनावमुक्त और सार्थक जीवन जीने में सहायता करता है।संक्षेप में: अद्वैत वेदांत यह सिखाता है कि सच्चा ज्ञान आत्मा और ब्रह्म की एकता को समझने में है। यह न केवल एक दर्शन है,

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