पिताजी साहब ओर हमारे यहां ध्यान में आने वाले सत्संगी गुरु के प्रति जो भाव रखते है वह है गुरु के प्रति दीवानगी और त्याग का महत्व इस बात में निहित है कि यह शिष्य को आत्म-सुधार और आध्यात्मिक विकास के चरम पर ले जाता है। जब शिष्य पूरी तरह से गुरु के प्रति समर्पित हो जाता है और अपनी बाधाओं का त्याग कर देता है, ओर गुरु का ज्ञान और कृपा उस तक बिना किसी रुकावट के पहुँच पाती है। यह संबंध शिष्य को अज्ञानता से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले जाता है।
यह एक ऐसा पवित्र संबंध है जहाँ गुरु शिष्य को अपने भीतर के गुरु से परिचित कराता है, और उसे परम सत्य का अनुभव कराता है। इस प्रक्रिया में, शिष्य अपने व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर एक उच्च उद्देश्य के लिए जीता है।मेरी सोच के अनुसार यही गुरु के प्रति सच्ची भक्ति और विस्वास है