जब हम।किसी उच्चवह कोटि के संत के अनुयायी बन के दीक्षा लेने के बाद भक्ति ज्ञान ध्यान की अवस्था को पार कर समाधि की उस उच्चवह अवस्था मे पहुचते है जहाँ न शरीर न अन्य न कुछ अगर कुछ है तो आत्मा व परमात्मा का अस्तित्व ऐसा लगता हैंकि हम आंतरिक्ष में सूक्ष्म शरीर इवे भर रहित हो किसी के गुरुत्व आकर्षण में घूम रहर है या हमारी डोरी उसके साथ बंधी हुई है और उसी कक्ष में हम हल्के हो घूम रहे है ये समाधि की अवस्था में जब व्यक्ति की चेतना पूर्ण रूप से आत्मा या ब्रह्म में विलीन हो जाती है, तब शरीर के पाँच तत्व—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—प्राकृतिक रूप से अपने स्रोत में लौट जाते हैं। यानी वायु आकाश तत्व में अग्नि जल से मिल कर भाप फिर वायु में ओर शरीर पृथ्वी अपने को सुक्ष्म कणो में बदल।कर एक अलग रूप ग्रहण कर लेती है
हम जानते है कि
कि जब चार तत्व (वायु, आकाश, अग्नि, और जल) एक-दूसरे में विलीन हो जाते हैं, तो पृथ्वी तत्व (शरीर का ढांचा) का क्या होता है? इसका उत्तर यह है कि समाधि की उच्च अवस्था पर ये निर्भर होता है कि 5 वे तत्व की प्रकृति क्या रूप लेती हैसजीव समाधि (जीवंत समाधि) – यह योग साधकों की उच्चतम अवस्था मानी जाती है, जहाँ शरीर की जैविक क्रियाएँ बंद हो सकती हैं, लेकिन शरीर नष्ट नहीं होता। कुछ योगियों का मानना है कि ऐसी अवस्था में शरीर स्वयं सूक्ष्म में विलीन हो सकता है, ओर संत इसे आसानी से बदल लेते है निर्जीव समाधि (मरणोपरांत समाधि) – जब कोई संत, महायोगी या सिद्ध पुरुष समाधि की अवस्था में शरीर त्याग देते हैं, तो उनके शरीर को भूमि समाधि दी जाती है, जिससे पृथ्वी तत्व पृथ्वी में विलीन हो जाए। कुछ परंपराओं में अग्नि संस्कार (दाहसंस्कार) किया जाता है, जिससे शरीर के पंचतत्व प्रकृति में विलीन हो जाते हैं।
पर ये मेरी सोच नही है कि मृत्यु के बाद ऐसा होता है मेरी सोच जीवित अवस्था की है जिसमे हम गहन समाधि में लय हो अपने अस्तित्व को भूल जाते है और भरहीं हो हवा में तैरने लगते है सूक्ष्म विलय की अवधारणा – कुछ ग्रंथों में वर्णन आता है कि अत्यंत उच्च कोटि के योगियों का शरीर पंचतत्वों में विलीन हो सकता है, जैसे गुरु गोरखनाथ और अन्य सिद्ध महापुरुषों के संदर्भ मिलते हैं, जिनका शरीर अंतर्धान हो गया। इसे “सिद्ध समाधि” या “महासमाधि” कहा जाता है। अब ये प्रश्न मेरे मन मे फिर से उठा कि भर हैं कैसे हो सकते है तो।समाधि और भारहीनता:
समाधि में शरीर का भार कैसे प्रभावित होता है? गहन ध्यान और समाधि की स्थिति में शरीर की जैविक ऊर्जा, कंपन (vibrations), और गुरुत्वाकर्षण से संबंध बदल सकता है। कुछ योगियों के बारे में कहा जाता है कि वे लघिमा सिद्धि के कारण हल्के हो जाते हैं, लेकिन यह एक गूढ़ योगिक रहस्य है। लेकिन समाधिस्थ योगियों के शरीर से प्राण-ऊर्जा धीरे-धीरे निकलती है, जिससे मृत्यु के बाद भी कुछ समय तक शरीर में हल्कापन महसूस हो सकता है।ओर वे म्रत्यु के बाद ब्रह्मांड में सूक्ष्म शरीर के साथ स्थूल शरीर का कुछ अंश भी परिवर्तित हो सूक्ष्म शरीर के साथ चला जाता है जिससे शरीर का भार कम।हो जाता है
ये मेरी सोच है अगर गलत लगे तो डिलीट करदे ओर मुझे क्षमाजब हम।किसी उच्चवह कोटि के संत के अनुयायी बन के दीक्षा लेने के बाद भक्ति ज्ञान ध्यान की अवस्था को पार कर समाधि की उस उच्चवह अवस्था मे पहुचते है जहाँ न शरीर न अन्य न कुछ अगर कुछ है तो आत्मा व परमात्मा का अस्तित्व ऐसा लगता हैंकि हम आंतरिक्ष में सूक्ष्म शरीर इवे भर रहित हो किसी के गुरुत्व आकर्षण में घूम रहर है या हमारी डोरी उसके साथ बंधी हुई है और उसी कक्ष में हम हल्के हो घूम रहे है ये समाधि की अवस्था में जब व्यक्ति की चेतना पूर्ण रूप से आत्मा या ब्रह्म में विलीन हो जाती है, तब शरीर के पाँच तत्व—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—प्राकृतिक रूप से अपने स्रोत में लौट जाते हैं। यानी वायु आकाश तत्व में अग्नि जल से मिल कर भाप फिर वायु में ओर शरीर पृथ्वी अपने को सुक्ष्म कणो में बदल।कर एक अलग रूप ग्रहण कर लेती है
हम जानते है कि
कि जब चार तत्व (वायु, आकाश, अग्नि, और जल) एक-दूसरे में विलीन हो जाते हैं, तो पृथ्वी तत्व (शरीर का ढांचा) का क्या होता है? इसका उत्तर यह है कि समाधि की उच्च अवस्था पर ये निर्भर होता है कि 5 वे तत्व की प्रकृति क्या रूप लेती हैसजीव समाधि (जीवंत समाधि) – यह योग साधकों की उच्चतम अवस्था मानी जाती है, जहाँ शरीर की जैविक क्रियाएँ बंद हो सकती हैं, लेकिन शरीर नष्ट नहीं होता। कुछ योगियों का मानना है कि ऐसी अवस्था में शरीर स्वयं सूक्ष्म में विलीन हो सकता है, ओर संत इसे आसानी से बदल लेते है निर्जीव समाधि (मरणोपरांत समाधि) – जब कोई संत, महायोगी या सिद्ध पुरुष समाधि की अवस्था में शरीर त्याग देते हैं, तो उनके शरीर को भूमि समाधि दी जाती है, जिससे पृथ्वी तत्व पृथ्वी में विलीन हो जाए। कुछ परंपराओं में अग्नि संस्कार (दाहसंस्कार) किया जाता है, जिससे शरीर के पंचतत्व प्रकृति में विलीन हो जाते हैं।
पर ये मेरी सोच नही है कि मृत्यु के बाद ऐसा होता है मेरी सोच जीवित अवस्था की है जिसमे हम गहन समाधि में लय हो अपने अस्तित्व को भूल जाते है और भरहीं हो हवा में तैरने लगते है सूक्ष्म विलय की अवधारणा – कुछ ग्रंथों में वर्णन आता है कि अत्यंत उच्च कोटि के योगियों का शरीर पंचतत्वों में विलीन हो सकता है, जैसे गुरु गोरखनाथ और अन्य सिद्ध महापुरुषों के संदर्भ मिलते हैं, जिनका शरीर अंतर्धान हो गया। इसे “सिद्ध समाधि” या “महासमाधि” कहा जाता है। अब ये प्रश्न मेरे मन मे फिर से उठा कि भर हैं कैसे हो सकते है तो।समाधि और भारहीनता:
समाधि में शरीर का भार कैसे प्रभावित होता है? गहन ध्यान और समाधि की स्थिति में शरीर की जैविक ऊर्जा, कंपन (vibrations), और गुरुत्वाकर्षण से संबंध बदल सकता है। कुछ योगियों के बारे में कहा जाता है कि वे लघिमा सिद्धि के कारण हल्के हो जाते हैं, लेकिन यह एक गूढ़ योगिक रहस्य है। लेकिन समाधिस्थ योगियों के शरीर से प्राण-ऊर्जा धीरे-धीरे निकलती है, जिससे मृत्यु के बाद भी कुछ समय तक शरीर में हल्कापन महसूस हो सकता है।ओर वे म्रत्यु के बाद ब्रह्मांड में सूक्ष्म शरीर के साथ स्थूल शरीर का कुछ अंश भी परिवर्तित हो सूक्ष्म शरीर के साथ चला जाता है जिससे शरीर का भार कम।हो जाता है
ये मेरी सोच है अगर गलत लगे तो डिलीट करदे ओर मुझे क्षमा

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