अध्यात्म का सार

अध्यात्म का सार मानवता, समता, और धर्म निरपेक्षता में निहित है। असली आध्यात्मिकता वही है जो धर्म, जाति, भाषा, और सम्प्रदाय से परे होकर सबको एक समान देखता है।
मानवता को ही सबसे बड़ा धर्म मानता है और प्रीति, करुणा, और दया का व्यवहार करता है।

अद्वैत बोध में स्थित होकर एकत्व को देखता है – सभी में एक ही चेतना को पहचानता है व किसी धर्म, पंथ या संप्रदाय से बंधे बिना, समभाव (समान दृष्टि) रखता है।

अध्यात्म का सार:

वसुधैव कुटुम्बकम्: पूरी पृथ्वी को एक परिवार मानना।

अहिंसा परमो धर्मः: किसी भी जीव को कष्ट न देना।

सर्व धर्म समभाव: सभी धर्मों का सम्मान करना, लेकिन किसी से बंधन नहीं रखना।

अद्वैत दर्शन: सभी जीवों में एक ही आत्मा का वास देखना।

प्रेम, करुणा, और सेवा: निःस्वार्थ प्रेम और सेवा में ईश्वर की अनुभूति करना।
संतों का दृष्टिकोण:

कबीरदास: “हिन्दू कहे मोहि राम पियारा, मुसलमान कहे रहमान।
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।”

रविदास: “मन चंगा तो कठौती में गंगा।”

नानक: “एक ओंकार सतनाम।” – परमात्मा एक है।

रामकृष्ण परमहंस: सभी धर्मों को एक ही सत्य की ओर ले जाने वाले अलग-अलग मार्ग मानते थे।

स्वामी विवेकानंद: “जो मानवता की सेवा करता है, वही ईश्वर की सेवा करता है।”
मेरी सोच व विचार के अनुसार इस दुनिया मे सिरफ़ सिर्सच्चा संत वही है:जो धर्म निरपेक्ष हो, अहंकार शून्य हो, और सर्वसमभाव रखता हो।

जिसे किसी भी धर्म, पंथ या संप्रदाय में कोई आसक्ति न हो।

जो मानवता और प्रेम को ही परम धर्म मानता हो।

अध्यात्म का मूल उद्देश्य मानवता, समता, प्रेम, और करुणा में स्थित होना है, न कि किसी धर्म, पंथ या सम्प्रदाय में बँधना।

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