ध्वनि का शरीर और मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जब ध्वनि विशेष रूप से धुनात्मक (संगीतात्मक या कंपनयुक्त) होती है और उसे ध्यान या साधना के दौरान ग्रहण किया जाता है, तो यह हमारे स्थूल (भौतिक) शरीर से परे सूक्ष्म शरीर को जाग्रत कर सकती है।
कारण:
1. कंपन और ऊर्जा प्रवाह – ध्वनि की कंपन तरंगें हमारे शरीर के ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) को प्रभावित करती हैं, जिससे हमारी चेतना अधिक सूक्ष्म स्तर पर चली जाती है।
2. ध्यान अवस्था – जब हम गहरे ध्यान में होते हैं, तो हमारा मन बाहरी दुनिया से हटकर भीतर की ओर केंद्रित हो जाता है, जिससे स्थूल शरीर का बोध कम हो जाता है और सूक्ष्म शरीर की अनुभूति बढ़ जाती है।
3. शरीर-मस्तिष्क का संतुलन – ध्वनि तरंगें तंत्रिका तंत्र (nervous system) को शांत करती हैं, जिससे दिमाग की तरंगें धीमी होकर अल्फा या थीटा अवस्था में चली जाती हैं। यह अवस्था सूक्ष्म शरीर को अनुभव करने के लिए आदर्श होती है।
4. अहंकार का विलय – जब ध्वनि हमारे अस्तित्व में गहराई से गूंजती है, तो व्यक्तिगत अहंकार (ego) क्षीण होने लगता है, जिससे व्यक्ति अपनी सूक्ष्म चेतना को अधिक गहराई से महसूस कर सकता है।
5. ओमकार और नाद योग – वेदों और योग में कहा गया है कि “नाद” (ध्वनि) के माध्यम से व्यक्ति अपने सूक्ष्म शरीर का अनुभव कर सकता है। विशेष रूप से “ओम” का उच्चारण करने पर शरीर का कंपन स्थूल से सूक्ष्म स्तर पर चला जाता है।
इसलिए जब ध्वनि शरीर में गूंजती है, तो हमारा ध्यान बाहरी दुनिया से हटकर सूक्ष्म ऊर्जा और चेतना की ओर चला जाता है, जिससे स्थूल शरीर का अनुभव धीमा या लुप्त हो जाता है। यही कारण है कि गहरी साधना में लोग देहातीत (bodyless) अनुभव भी कर सकते हैं।
कारण:
- कंपन और ऊर्जा प्रवाह – ध्वनि की कंपन तरंगें हमारे शरीर के ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) को प्रभावित करती हैं, जिससे हमारी चेतना अधिक सूक्ष्म स्तर पर चली जाती है।
- ध्यान अवस्था – जब हम गहरे ध्यान में होते हैं, तो हमारा मन बाहरी दुनिया से हटकर भीतर की ओर केंद्रित हो जाता है, जिससे स्थूल शरीर का बोध कम हो जाता है और सूक्ष्म शरीर की अनुभूति बढ़ जाती है।
- शरीर-मस्तिष्क का संतुलन – ध्वनि तरंगें तंत्रिका तंत्र (nervous system) को शांत करती हैं, जिससे दिमाग की तरंगें धीमी होकर अल्फा या थीटा अवस्था में चली जाती हैं। यह अवस्था सूक्ष्म शरीर को अनुभव करने के लिए आदर्श होती है।
- अहंकार का विलय – जब ध्वनि हमारे अस्तित्व में गहराई से गूंजती है, तो व्यक्तिगत अहंकार (ego) क्षीण होने लगता है, जिससे व्यक्ति अपनी सूक्ष्म चेतना को अधिक गहराई से महसूस कर सकता है।
- ओमकार और नाद योग – वेदों और योग में कहा गया है कि “नाद” (ध्वनि) के माध्यम से व्यक्ति अपने सूक्ष्म शरीर का अनुभव कर सकता है। विशेष रूप से “ओम” का उच्चारण करने पर शरीर का कंपन स्थूल से सूक्ष्म स्तर पर चला जाता है।
इसलिए जब ध्वनि शरीर में गूंजती है, तो हमारा ध्यान बाहरी दुनिया से हटकर सूक्ष्म ऊर्जा और चेतना की ओर चला जाता है, जिससे स्थूल शरीर का अनुभव धीमा या लुप्त हो जाता है। यही कारण है कि गहरी साधना में लोग देहातीत (bodyless) अनुभव भी कर सकते हैं।