गुरु-शिष्य परंपरा में कई तरह की बाधाएँ और मानसिक अवस्थाएँ देखने को मिलती हैं।
- गुरु पर विश्वास कठिन क्यों होता है?
क्योंकि सच्चे गुरु को पहचानना कठिन है।
आजकल नकली गुरुओं की अधिकता से लोग भ्रमित हो जाते हैं।
कई लोग अपने अहंकार के कारण गुरु को स्वीकार नहीं कर पाते।
- कुछ शिष्य बीच में ही छोड़ देते हैं
जब कठिनाइयाँ आती हैं, तो वे धैर्य नहीं रख पाते।
वे केवल लाभ के लिए गुरु के पास आते हैं और जब तुरंत फल नहीं मिलता, तो छोड़ देते हैं।
- अपने ऊपर विश्वास न करना
यह आत्म-संदेह और आध्यात्मिक समझ की कमी के कारण होता है।
गुरु मार्गदर्शन देते हैं, लेकिन शिष्य को आत्मविश्वास भी विकसित करना पड़ता है।
- गुरु के बलिदान के बाद भी संदेह
यह शिष्य की मानसिकता और बाहरी प्रभावों के कारण होता है।
कई लोग तर्क और प्रमाण चाहते हैं, जबकि आध्यात्मिकता अनुभव से आती है।
- शक्ति और संपत्ति के लालच में आना
कुछ लोग गुरु की सिद्धियों और ऐश्वर्य से आकर्षित होकर आते हैं, पर सच्ची साधना नहीं करना चाहते।
- अंधविश्वास और अतिवाद
कुछ बिना सोचे-समझे हर बात मान लेते हैं, जिससे वे सही दिशा में नहीं बढ़ पाते।
कुछ केवल मूर्ति पूजा या शास्त्रों को ही सबकुछ मान लेते हैं और गुरु की भूमिका को नकार देते हैं।
- भौतिक और आध्यात्मिक जगत का नकारात्मक दृष्टिकोण
संतुलन न होने के कारण कुछ लोग भौतिकता को नकारते हैं तो कुछ आध्यात्मिकता को।
सही गुरु भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में संतुलन बनाना सिखाते हैं।
इसलिए, गुरु-शिष्य संबंध में सबसे महत्वपूर्ण है सही गुरु की पहचान और शिष्य का समर्पण और धैर्य। अगर यह दोनों मिल जाएँ, तो आध्यात्मिक उन्नति अवश्य होती है।