अनाहत चक्र (हृदय चक्र)

अनाहत चक्र और सहस्रार चक्र की भूमिका

अनाहत चक्र (हृदय चक्र)

यह चक्र प्रेम, करुणा, और दिव्य ऊर्जा का केंद्र है।

यहाँ पर नाद (ध्वनि) की उत्पत्ति होती है, जिसे अनाहद नाद कहा जाता है।

यह आत्मा और परमात्मा के मिलन का द्वार खोलता है।

सहस्रार चक्र (मस्तिष्क का शीर्ष चक्र)

यह ब्रह्म से एकत्व और परम ज्ञान का केंद्र है।

यहाँ पर सभी चक्रों की ऊर्जा एकत्र होकर दिव्य चेतना में विलीन हो जाती है।

इसे सहस्रदल कमल कहा जाता है, जहाँ आत्मा का पूर्ण जागरण होता है।

2. अनाहत और सहस्रार चक्र का मिलन कैसे होता है?

यह मिलन तब होता है जब साधक अपनी ऊर्जा (कुंडलिनी) को अनाहत चक्र से उठाकर सहस्रार चक्र तक ले जाता है।

मुख्य साधना प्रक्रियाएँ:

(1) कुंडलिनी जागरण:

जब कुंडलिनी शक्ति मूलाधार से उठती है, तो यह अनाहत चक्र को सक्रिय करती है।

अनाहत चक्र में पहुँचने पर साधक को दिव्य प्रेम, आनंद, और अनाहद नाद का अनुभव होता है।

यह शक्ति जब सहस्रार चक्र तक पहुँचती है, तब व्यक्ति आत्मसाक्षात्कार की अवस्था में आ जाता है।

(2) अनाहद नाद साधना:

अनाहत चक्र में दिव्य नाद सुना जाता है, जिसे “शाश्वत ध्वनि” कहते हैं।

जब साधक इस ध्वनि पर ध्यान केंद्रित करता है, तो यह उसे सहस्रार चक्र तक ले जाती है।

इस प्रक्रिया में मन पूरी तरह स्थिर हो जाता है और ध्यान की गहराई बढ़ती है।

(3) ध्यान और समाधि:

जब साधक “सोऽहम” या “अहं ब्रह्मास्मि” की अवस्था में स्थिर हो जाता है, तब अनाहत और सहस्रार चक्र का मिलन होता है।

इस अवस्था में “अहम् और परम” का भेद समाप्त हो जाता है।


3. इस मिलन का अनुभव कैसा होता है?

आनंद और प्रेम: दिव्य प्रेम और आनंद की अनुभूति होती है, जो शब्दों से परे है।

प्रकाश और नाद: साधक को दिव्य प्रकाश और अनाहद नाद (शाश्वत ध्वनि) का अनुभव होता है।

स्वयं का लय: अहंकार पूरी तरह समाप्त हो जाता है, और साधक केवल “शुद्ध चैतन्य” के रूप में बचता है।

ब्रह्म से एकत्व: सहस्रार चक्र पर ऊर्जा का मिलन होने से, साधक ब्रह्म से एकत्व की स्थिति में प्रवेश करता है।


4. कौन सी समाधि में यह मिलन होता है?

यह मिलन उच्च स्तर की समाधि में होता है, विशेष रूप से:

(1) सविकल्प समाधि:

यहाँ साधक को दिव्य अनुभव होते हैं, लेकिन मन अभी भी सूक्ष्म रूप में सक्रिय होता है।

अनाहत में प्रेम और सहस्रार में प्रकाश का अनुभव होता है।

(2) निर्विकल्प समाधि:

इसमें साधक पूरी तरह आत्मा में विलीन हो जाता है।

कोई द्वैत नहीं रहता—सिर्फ शुद्ध चैतन्य, नाद, और अनंत शून्यता का अनुभव होता है।


5. निष्कर्ष

✅ अनाहत और सहस्रार चक्र का मिलन आत्मसाक्षात्कार की ओर ले जाता है।
✅ यह मिलन कुंडलिनी जागरण, अनाहद नाद साधना और ध्यान के माध्यम से संभव होता है।
✅ इस अवस्था में साधक दिव्य प्रेम, अनंत प्रकाश, और ब्रह्म से एकत्व का अनुभव करता है।
✅ यह उच्चतम समाधि (निर्विकल्प समाधि) में पूरी तरह प्रकट होता है।

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