आंतरिक्ष (स्पेस) में ऊर्जा तो होती है, लेकिन वहाँ प्रकाश या अंधेरा अपने पारंपरिक रूप में मौजूद नहीं होता, क्योंकि प्रकाश को देखने के लिए किसी माध्यम या परावर्तन की आवश्यकता होती है।
कारण:
- प्रकाश का न दिखना – प्रकाश (फोटॉनों) को देखने के लिए किसी वस्तु से टकराकर परावर्तित होना जरूरी होता है। आंतरिक्ष में वातावरण नहीं होने के कारण प्रकाश को परावर्तित करने के लिए कुछ नहीं होता, इसलिए यह आँखों को दिखाई नहीं देता।
- अंधकार का अहसास – चूँकि प्रकाश परावर्तित नहीं होता, इसलिए हमें आंतरिक्ष काला (अंधकारमय) दिखता है। वास्तव में, यह “अंधेरा” नहीं, बल्कि प्रकाश के अभाव का अनुभव है।
- ऊर्जा का अस्तित्व – आंतरिक्ष में सौर किरणें, ब्रह्मांडीय विकिरण, विद्युत-चुंबकीय तरंगें, और अन्य ऊर्जाएं मौजूद होती हैं, लेकिन बिना माध्यम के वे आँखों से दिखाई नहीं देतीं।
निष्कर्ष:
आंतरिक्ष वास्तव में “शून्यता” है, जहाँ कोई ठोस माध्यम नहीं होता, लेकिन वहाँ ऊर्जा (जैसे किरणें और तरंगें) जरूर होती हैं। हमें यह स्थान अंधकारमय दिखता है, लेकिन यह प्रकाश के न दिखने की वजह से है, न कि वास्तविक अंधेरे की वजह से।इस कारण जब भी हम समाधि की अवस्था मे केवल्य की स्तिथि में अनाहद व अजपा जाप को मन मे स्थिर रख कर ध्यान की उच्च स्तिथि में निर्लिप्तता में निर्लिप्त समाधि में होते है तो हमे शून्यता के साथ भर हीनता व अंधेरा नजर आता है पर उस अंधेरे में भी हमे लगता है कि कोई ऊर्जा है जो हमे नजर तो।नही आ रही पर हमारे अस्तित्व के साथ है जो अंधेरे में भी हमे राह बता रही है और आगे बढ़ने कर लिए प्रेरित कर रही है मेरी नजर में यही परामउर्जा के रूप में परमात्मा है जो सब जगह मौजूद है पर नजर नही आता